प्रिया देवांगन "प्रियू", राजिम, जिला - गरियाबंद
हमर छत्तीसगढ़ धरम, अध्यात्म अउ दर्शन के भुइंयाँ आय। इहाँ देवी-देवता मन के वास होथे, अउ स्वयंभू भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग तको जगह-जगह विराजमान हे। छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा घलो कहे जाथे, काबर कि इहाँ धान के फसल जादा मात्रा मा उपजाय जाथे। अइसनेच हमर छत्तीसगढ़ ला तीरथगढ़ याने तीरतधाम के ठऊर घलो कहे जा सकथे, काबर कि ये धरती मा कतको तीरतधाम अउ दार्शनिक स्थल हें, जेमा राजिम नगरी ह बड़ नामी ठऊर आय। पहिली राजिम ला “कमलक्षेत्र” के नाम ले घलो जाने जात रिहिसे।
धरम अउ अध्यात्म के ठऊर : राजिम
त्रिवेणी संगम राजिम नगरी
महानदी, पैरी अउ सोंढूर नदी जेन जगा मिले हे तेन ला त्रिवेणी संगम कहे जाथे। हमर राजिम नगरी ह “छत्तीसगढ़ के प्रयाग” नाम से प्रसिद्ध हे। जेन हा गरियाबंद जिला मा स्थित हे। इहाँ के भुइंयाँ चारों मुड़ा हरियर – हरियर दिखत रहिथे। धान के बाली अउ किसम-किसम के फूल-पान मन ममहावत झूमत रहिथे। लोगन के बोली गुरतुर-गुरतुर लागथे। माघ के महीना मा कुम्भ के मेला के आयोजन होथे। राजिम नगरी हर भारत के पाँचवा धाम के रूप मा प्रसिद्ध हे। माघ पूर्णिमा मा शिवरात्रि तक भव्य आयोजन होथे, जेन पन्द्रह दिन तक रहिथे। छत्तीसगढ़ सरकार डहर ले राजिम मेला ल पाँचवा कुम्भमेला के दर्जा दे गे हे।
राजीव लोचन मंदिर
राजिम मा सुप्रसिद्ध राजीव लोचन भगवान विराजमान हे। इहाँ के भुइंयाँ पवित्र माने जाथे। कहे जाथे कि वनवास काल मा श्री रामचन्द्रजी अपन कुल देवता महादेव जी के पूजा करे रिहिस। राजीव लोचन के बारे मा कहे जाथे कि गाँव के एक माईलोगिन राजिम रोज घूम-घूम के तेल बेचत रिहिस। एक दिन वोहर तेल बेचे ला जावत रिहिस त हुरहा जमीन मा दबे पथरा मा हपट गे, अउ मुड़ी मा बोहे तेल के बर्तन हा पूरा खाली होगे। राजिम माता ला अब्बड़ चिंता होय लागिस। तेल के खाली बर्तन ला पथरा ऊपर रख दिस अउ कहे लागिस मँय का करौं भगवान ! कइसे होगे ! घर के मनखे ला का कइसे बताहूँ। अपन आँखी ला मूँद के भगवान ले विनती करे लागिस। हाथ ला थेम के धीरे-धीरे उठ के खाली बर्तन ला उठाये बर देखिस ता, ओखर पाँव तरी के जमीन खिसक गे। आँखी बड़े-बड़े होगे। एकदम अकचका गे। ओखर खाली बर्तन हा तेल से लबालब भर गे रहय। ओखर खुशी के ठिकाना नइ रहिगे। “राजिम” हा घर जा के जम्मों आपबीती ला बताइस त कोनों नइ पतियावत रिहिस। दूसर दिन फेर तेल बेंचे ला निकल गे। बिहनिया ले संझा होगे फेर तेल एकोकनी नइ सिराये रहय। तब राजिम के घर वाले मन वो पथरा के शिला ला निकालिस त भगवान के मूर्ति रिहिसे अउ ओला अपन घर मा राखिस। तब ले धंधा-पानी बने चले अउ गरीबी घलो दूर होगे।
एक दिन राजा जगत पाल के सपना मा राजीव लोचन भगवान हा आइस अउ कहिस कि मोर मूर्ति के स्थापना मंदिर मा करवा दे। मँय राजिम तेलिन के घर मा हो। राजा जगत पाल हा दूसर दिन राजिम तेली के घर चल दिस अउ सपना के बारे मा बताइस। राजिम ओखर बात ल नइ मानिस। राजा बहुत जिद्दी करीस। राजिम बिलख-बिलख के रोये मेहा मोर भगवान ला अपन से दूर नइ कर सकँव। राजा दूसर दिन अपन सैनिक मन ला भेजिस के जबरदस्ती उठा के मूर्ति ल लावव। मूर्ति एकदम गरू होगे, उठबे नइ करिस। तब फिर भगवान हा राजा के सपना मा आ के कहिस के जब तक राजिम के रजामंदी नइ होही, तब तक हिल नइ सकँव। तब राजा राजिम के पास जा के बोलिस कि माता तँय रो झन, जो माँगबे वो देहूँ बस ये मूर्ति ला मंदिर मा स्थापना करन दे। राजिम माता बोलिस कि राजा मोला भगवान मिल गे अउ कुछ नइ चाही । ते हा भगवान के नाम ला मोर नाम से रखबे अउ ये पूरा संसार मा भगवान ला मोर नाम से जाने जाही । राजा मान गे। तब से राजिम नगर के नाम से आज प्रसिद्ध हे।
कुलेश्वर महादेव मंदिर
ए मंदिर के बारे मा सुने बर मिलथे कि नदिया के बीचों-बीच म कुलेश्वर महादेव विराजमान हे। कहे जाथे कि वनवास काल मा माता सीता अपन व्रत ला पूरा करे बर नदी मा स्नान कर के बालू (रेती) से महादेव के शिवलिंग बना के पूजा करे रिहिसे। अउ अँजुरी मा भर-भर के जल चढ़ाये रिहिस। तब शिवलिंग मा माता सीता के पाँच अंगरी ले छेद होगे रिहिस। ओखर कारण ओला पंचमुखी महादेव भी कहे जाथे। आज भी माता सीता के अंगरी के निशान देखे बर मिलथे। दूर-दूर से भक्त मन पंचमुखी महादेव के दर्शन करे बर आथे। माँघी पुन्नी मा भव्य कुम्भ मेला के आयोजन होथे। पन्द्रह दिन ले लगातार छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम चलथे अउ बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मी हीरो-हीरोइन, कलाकार मन अपन कला प्रर्दशित करथे। देश-विदेश के मनखे मन घलो देखे बर आथें। दर्शन अउ कार्यक्रम के लाभ उठाथे।
ममा-भांजा मंदिर
राजीव लोचन मंदिर ले बाहिर निकलते साठ ममा-भांजा के मंदिर हे। कहे जाथे की कुलेश्वर महादेव अउ राजिव लोचन के दर्शन तब तक पूरा नहीं होय जब तक ममा-भांजा के मंदिर के दर्शन नइ करे। येखर दर्शन बिना लोगन के दर्शन अधूरा माने जाथे। कहे जाथे कि बाढ़ मा जब कुलेश्वर मंदिर डूबत रिहिसे तब उहाँ ले एक आवाज निकलत रिहिसे बचाव…बचाव…. ममा मँय बूड़त हौं…। तब ममा ह अपन भांजा ला नाव मा सवार हो के बचाये ला गिस। तब से उहाँ ममा अउ भांजा एक साथ एक नाव मा बइठ के नदिया पार नइ कर सकँय। नदिया के किनारे बने ममा के मंदिर अंदर शिवलिंग ला बाढ़ के जल जइसे ही छूथे, वइसे ही बाढ़ अटाना चालू हो जाथे। कतको बाढ़ आ जथे फेर कुलेश्वर महादेव हर नइ बूड़े। राजिम त्रिवेणी संगम मा अस्थि विसर्जन करे बर भी आथे। इहाँ मोक्ष के प्राप्ति होथे। दुरिहा-दुरिहा के लोगन मन अस्थि विसर्जन कर के पिंड दान भी करथे।
कुम्भ मेला व दार्शनिक स्थल
माँघी पुन्नी मा कुम्भ के मेला के आयोजन करे जाथे। पन्द्रह दिन तक मनखे के कचाकच भीड़ रहिथे। देश-विदेश ले लोगन मन दर्शन करे बर अउ कुम्भ मेला के आनंद उठाये बर आथे। नदिया के तीर मा बाहर ले आये माला-मुँदरी बेचइया मन के पन्द्रह दिन तक डेरा रहिथे। बड़े-बड़े साधु-संत, चंदन-चोवा लगाय, हाथ मा तिरशूल धरे, डमरू धरे, भभूत चुपरे नागा साधु मन घूमत रहिथें। साधु मन के संगे-संग आम आदमी मन भी पुन्नी नहाये बर आथें। हमर राजिम नगरी हर बहुत बड़े तीरथ धाम कहलाथे। अपन जिनगी मा लोगन मन ला एक बार जरूर राजिम धाम के दर्शन करना चाही।