वंदना जगमोहन जायसवाल, व्याख्याता, हिन्दी (सक्ति)
हमर छत्तीसगढ़ के संसकिरती हर कोनो नवा नोहे, निचट जुन्ना हावै, फेर कतको बाहरी मन इहां आके घुलमिल गिन ,लेकिन एला मेटाए नई सकिन। हमन कतको रंग ढंग म नवा बन जान फेर अपन अंतस ले छत्तीसगढ़ियच रहिबो। अंगाकर ह हमर जीभ ल अब्बड़ सुहाथे, सोंहारी, अईरसा, बोबरा, गुचकलिया, ईड़हर, ठेठरी, खुरमी, गुलगुला, पपची कतको हमर राज के पहिचान हे। अइसने कतको रकम-रकम के गहना जेकर आज हमन नाम घलो भुला गे हन।
अजर-अमर धारा बोहाए हमर छत्तीसगढ़ के जस
धान के बाली खायेच बर नोहे, कतको सुघ्घर-सुघ्घर एकर सजाबटी सामान बनथे। तूमा के तूमड़ी, डोड़का के बुछ, लीम के मुखारी, बांस के रकम-रकम के छोटे बड़े चीज आज पलासटिक के कचरा ल मात देथे। छत्तीसगढ़ के संसकिरती ल अपनाहू त पलासटिक कचरा के निपटारा के समस्या हवा हो जाही, फेर आज अतका रूखराई त घलो नई बांचिस। अईसन समे म एकठन चुनोती बन जाथे कि हमन हमर संसकिरती के सांस ल कईसे जिंदा राखबो। एक समे अईसन आ जाही जब हमर लईकामन माटी के चूल्हा ल नई चिन्हें।
अभी थोकुन दिन पहिली कोटा बिलासपुर के डा. सी.वी.रमन बिश्वबिद्यालय गे रहेव। उहां के केंटिन म एकठन “छत्तीसगढ़-संजोही” बनाए हें। अब चाहे बिश्वबिद्यालय के नियम म रहे कि सउँक म बनाए, लेकिन देख के बड़ सुख लागिस कि छत्तीसगढ़ के पहिचान मन ल एक जघा जोर के सुघ्घर बुता करीन हे। अईसने उदिम छत्तीसगढ़ के जम्मों सिच्छन संसथान म करे बर लागही, नईतो हमर पीढ़ी ल दिसा भरम हो जाही। इस्कूल मन म एक कोन्हा छत्तीसगढ़ के संसकिरती बर घलो रहे, जेमा अपन माटी के खूसबू आए। समे के मांग ल आघू रखी अऊ अपन संसकिरती बर काम करे के सुरवात नान्हे-नान्हे लईका मन ले करी। इही तो हमर भबिष्य आए।