खेम फुलकरिहा, फुलकर्रा (गरियाबंद)
“माफ़ी देव सरकार, माफ़ कर देव, गलती होगे, दुबारा अइसन नइ होय। बस एक घांव माफ़ कर देव।”
कोटवार हर पंच ले माफ़ी माँगत कहिथे।
“का के माफ़ी रे कोटवार ? तोर कारण, मुखिया करा ले मोला कतका सुनना पड़िस हे। अउ तें बस एक माफ़ी माँग के बुलक जाहूँ कहत हस।”
“पंच साहेब! वो लड़का मोर कर लबारी मारे रिहिस, में भल ला भल जानेंव ………।”
पंच, कोटवार के बात ला काटत कहिथे,
“भल ला भल जानेस, अतका बछर तोला नौकरी करत होगे रे कोटवार। कोटवारी करत – करत तोर चुंदी – मुड़ी पाक गे हे अउ तोला कोन आदमी का हे? तेकर समझ अभी ले समझ नइ हे?”
“अब का बताँव ददा? वो लड़का मोर कर किहीस कि, में मुखिया के बनाय गोंदली क्रिकेट क्लब ले जुड़े हँव, में मुखिया जी ला अतका सुग्घर योजना बर, गोठबात करके धन्यवाद देना चाहत हँव। मोला मुखिया जी के सम्मेलन मा माइक देवा देतेव। अब मोला का पता? कि पूरा गाँव वाला मन के आघू हमर मुखिया जी संग जबान लड़ा के पूरा गाँव मा मुखिया जी ला गलत साबित कर दिही कहिके।”
“अरे! तोला चेहरा देख के समझ नइ अइस कि, वो लड़का बेरोज़गार हे। जबले कोरोना अउ ये आरक्षण के मुद्दा चलत हे, मोर कर जेन भी वो उमर के लड़का – लड़की मन आथे। उँखर मुँहू ला देखते साठ ही समझ जथों। अउ तें हमर गाँव के अतेक जुन्ना कोटवार होके भी………”
“महूँ समझ जथों पंच साहब, बाकी ये लड़का हर ना बेरोज़गारी के बनेच मारा हे लागथे। पूरा प्रेक्टिस करके आय रिहिस कते? कि युवा मन के बात ला मुखिया अउ गाँव वाला मन ला बतानच हे कहिके। अपन हाव – भाव ले थोरको पता लगन नइ दिस कि वो माइक धरके अपन पीरा ला बताना चाहत हे। तिही पाय के महूँ धोखा खागेंव ददा।”
“ठीक हे। अब जेन होना रिहिस, वो ता होगे। अब मानसिक रूप ले कमजोर वाला हे वाला हमर जुन्ना तरीका अपना के ये मामला ला रफ़ा – दफ़ा कर बर लागही। अउ चल मुखिया तोला अपन बाँड़ा में धर के लानबे के हे। जाते साठ तें मुखिया के गोड़ धर के माफ़ी माँग लेबे तभे बाँचबे।”
फेर दूनों झन मुखिया घर कोती चल देथें।