माघी पुन्नी भारतीय हिन्दू धर्म संस्कृति म अपन एक अलग महत्व हावय। ए पावन बेरा म हमर धर्मावलम्बी,पुण्यात्मा श्रद्धालु ,यहॉं तक की हमर देवी-देवता सहित ऋषि-मुनि, साधु-संत सन्याशी मन ल पुरा बछर भर अगोरा रहिथे। अउ ए पावन अवसर माघ पूर्णिमा,जब आथे, त सम्मक धरा के तीर्थ-स्थल म,नदिया के संगम स्थल म पुष माह के प्रतिपदा के दिन से ही श्रद्धालु, साधु-संत अउ देव योनि मन के पदार्पण और समागम होना शुभारम्भ हो जाथे।
अशोक पटेल “आशु”, तुस्मा, शिवरीनारायण
अईसे पुण्य आत्मा मन के ए पावन धरा म आगमन होथे त ए धरती ह धन्य हो जाथे। अउ जगह-जगह तीर्थ स्थल के रूप में परिवर्तित हो जाथे। जम्मो धरती के रज -रज म स्तुति, आराधना, उपासना के गीत-संगीत गूंजे लगथे। मंदिर म आरती, शंख के सुमधुर ध्वनि, घंटी के निनाद, श्लोक-स्तुति-मंगलाचरण के उच्चारण होए लगथे। अउ ए गुंज अपने अपन दशों दिशा म गूंजे लग जाथे। मंदिर मन के कायाकल्प हो जाथे। कलश कंगूरा म पताका फ़हराय लग जाथे। प्रकृति में हरियाली आ जाथे। बाग-बगिचा म रंगत आ जाथे। पुरवाही बहे लगथे। चारो दिशा ह आनंद म भर जाथे। अउ अइसे म शुरू होथे- “मेला-मड़ाई” के दौर।
हमर छत्तीसगढ़ म मेला के विशेष महत्व हावय। जिहाँ हमर कला,संस्कृति,परम्परा,धर्म, आस्था,विश्वास, धरोहर ह देखे ल मिलथे। मेला के अपन अलग ही महत्व हावय। जिहाँ अनेक जाति धर्म स्वावलम्बी के लोगन के मेल-मिलाप होथे। साधु संतन मन के मेल-मिलाप होथे। सगा-सहोदर मन के मेल-मिलाप होथे। बर –बिहाव के बर नाता-रिश्ता मन के मेल-मिलाप होथे। मेला के शाब्दिक अर्थ ही हावय -“मेल-मिलाप”। हमर छत्तीसगढ़ म अइसे पावन बेरा म माघी पूर्णिमा के मेला ह जगह-जगह म भराथे।
राजिम मेला-
सबले पहिली स्थान हावय राजिम मेला के। इहाँ ल नागा साधु संत मन के जमावड़ा होथे। अउ फेर संगम के धार पैरी सोंढुर महानदी म शाही स्नान के सिलसिला शुरू होथे। जिहाँ ल भगवान राजीव लोचन और कुलेश्वर महादेव जी ह विराजमान हे। अईसे मान्यता हे कि इहाँ ल भगवान श्री राम अऊ लक्ष्मण जी पधारे रहिन। जेन हर इही संगम म भगवान शंकर जी के स्थापन करके उनकर पूजा अर्चना करिन।
शिवरीनारायण मेला –
इहाँ भी अइसे मान्यता हे कि चौदह बछर के बनवास काल म भगवान राम इहाँ पधारे रहिन। जिहाँ ल शबरी माता ह दुनों भाई ल मीठ-मीठ बोईर खवाये रहिस। इहाँ ल भी संगम नदिया हावय। महानदी, शिवनाथ अऊ जोंक। जिहाँ ल श्रद्धालु मन डुबकी लगाके दीपदान करथें। अउ पुण्य के भागीदार होथें। शिवरीनारायण हर दु ठन राज्य छत्तीसगढ़ अउ उड़ीसा के आस्था के केंद्र घलो आय। उड़ीसा ले भगवान जगन्नाथ चलकर शिवरीनारायण के मुख्य द्वार तक आथे। स्वयं भोग लगाथे तभे भगवान के मुख्य कपाट हर खुलथे। इही श्रद्धा के कारण दूर दराज से लोगन मन भी लोट मारत इहां आथें। अउ अपन मनोकामना ल पूर्ण करथें।
सोन कुंड मेला-
गौरेला पेंड्रा मार्ग ले बिलासपुर मार्ग म 17 किलोमीटर दूरी म स्थित तीर्थ सोनकुण्ड हावय। इहॉं ल गुरु पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा म भी मेला भराथे। इहें ल सोनभद्र नदी के उद्गम क्षेत्र माने जाथे। अउ इही ग्राम ह सोन बचरवार सोनमुडा के नाम से भी प्रसिद्ध हावय।
बेलपान मेला–
बेलपान मेला बिलासपुर जिला के तखतपुर म स्थित हावय। इहाँ नर्मदा कुंड के तिर मेला भराथे। ए हर 10 दिन तक चल थे। माघी पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु मन नर्मदा कुंड म डुबकी लगाथे। अउ भगवान नर्मदेश्वर म जलाभिषेक करथें। अउ अईसे मान्यता हे कि इहाँ डुबकी लगाय से चर्मरोग से सम्बंधित बीमारी ह दूर हो जाथे।
कर्णेश्वर मेला–
कर्णेश्वर मेला जिला मुख्यालय धमतरी से 65 किलोमीटर दूर नगरी ब्लॉक के सिहावा म स्थित हावय। इहॉं भगवान शंकर जी के पुरखौती मंदिर हे। श्रद्धालु मन इहाँ जाके जलाभिषेक करथें। कर्णेश्वर मेला देवुर पारा सिहावा के चित्रोतपल्ला महानदी के संगम स्थल म हे। इहाँ श्रृंगी ऋषि आश्रम पर्वत के नीचे 6 दिवसी मेला भराथे।
मधुबन धाम के मेला–
मधुबन धाम के मेला ह राजिम मेला के बाद से शुरू होथे। ए मेला ह राजिम ले 20 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा म धमतरी जिला के ब्लॉक मगरलोड में स्थित हावय। इहॉं भी अईसे मान्यता हावय कि भगवान राम लक्ष्मण हर 14 बछर बनवास के दौरान इहाँ ले गुजरे रहिस। इहाँ ल मेला के बेरा मा सुंदर राम कथा वाचन होथे। आसपास के लोगन मन भारी संख्या म मेला आथे। इहाँ अनेक जाति समाज द्वारा भव्य मंदिर निर्माण कराए गे हे। जे हर हमर लिए भक्ति,आस्था अउ विश्वास के संगम आय। ए प्रकार से कहे जा सकत हे कि हमर छत्तीसगढ़ के मेला ह आस्था अउ विश्वास के संगम आय। जेहर छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक, पारम्परिक विरासत ल संजो के रखे हावय।