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जस बगरईया

‘गुरतुर मया’- रमेश कुमार सोनी के छत्तीसगढ़ी हाइकु संगरह

Araitutari Editor By Araitutari Editor Published April 23, 2023
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gurtur maya mor mayaru ke
Chhattisgarhi Haiku Collection by Ramesh Kumar Soni
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गुरतुर मया मोर मयारू के, प्रस्तुति- डॉ. पीसी लाल यादव, गंडई-पंडरिया

साहित्यकार सर्जक अपन सिरजन ले समाज में चेतना जागरित करथे। तेखर बर नवा-नवा जतन घलो करथें। जतन के माध्यम बनथें साहित्य के विधा मन। कहानी, कविता ,गीत, नाटक, उपन्यास, संस्मरण,  व्यंग्य अउ कतकोन। पद्य विधा में हाइकु लेखन के उदीम हिंदी के संगे-संग छत्तीसगढ़ी में घलो देखउल देथे। जेन ल हमन जपानी कविता के रूप म जानथन जउन हर 5-7-5 के वर्ण म बंधाय-छंदाय रथे। कम शब्द में ज्यादा गोठ अउ पोठ गोठ एखर विशेषता आय। मन के उदगार, प्रतीक अउ बिम्ब के रूप म हमर मन ला मोह लेथे। हिंदी के संगे-संग छत्तीसगढ़ी म घलो बेरा-बेरा में हाइकु पढ़े ल मिलत रिहिस। नीक लगे, मीठ लगे अभी सरलग ए उदीम छत्तीसगढ़ी म जारी हे अउ उदीम करइया हे छत्तीसगढ़ के पोठ साहित्यकार भाई रमेश कुमार सोनी रायपुर बसना वाले ह।

गुरतुर मया मोर मयारू के

अभीच अभी उन्खर पठोय छत्तीसगढ़ी हाइकु संगरह ‘गुरतुर मया’ ल एके बइठका म पढ़ेंव। पढ़े ल धरेंव त पढ़तेच रेहेंव काबर के ए संगरह में संग्रहित हाइकु मन में मया के महक हे, चिरई-चुरगुन के चहक हे, पीरा के दहक हे अउ हांसी-ख़ुशी के लहक हे। मया चाहे अपन माटी बर होय, अपन संस्कृति बर होय के अपन प्रकृति बर होय एमा सब समाय हे। तेखरे सेती एखर नाँव ‘गुरतुर मया’ धराय हे। नई पतियाव त पढ़ लव-

दाई के कोरा, कुबेर के खजाना नई सिराय

सात खंड म खड़ाँय ए ‘गुरतुर मया’ के सात रंग हे जेन मिन्झर के इन्द्रधनुष रचथे। ए खण्ड आय, ए रंग आय-1 सोनहा बिहान, 2 धान के कटोरा, 3 मोर मयारू, 4 रिस्ता-नता के झाँपी, 5 हमर चिन्हारी, 6 माटी के कुरिया अउ 7 मिंझराहा। भूमिका में डॉ.चंद्रशेखर सिंह जी लिखथें के ‘हाइकु के पहिली लाइन में दिशा मिलथे दूसर लाइन में विस्तार दिखथे अउ तीसर लाइन ले भाव, निष्कर्ष म पहुँचथे।  सिरतोन बात आय ‘गुरतुर मया’ के हाइकु के परछो लेवन। पहिली खंड ‘सोनहा बिहान’ नाव के मुताबिक हमर जिनगी के अंजोरी-अँधियारी, सुख-दुःख, प्रकृति अउ संस्कृति ल मुखरित करे हे। कुछ बानगी देखन-

संझौती बेरा / अगास दिया बरे / जोगनी तारा।

मखना माढ़े / सेठ के पेट कस / छान्ही म बाढ़े।

जोंधरा दाढ़ी / पाके ले झर जाथे / दाँत निपोर।

पुस के घर / कथरी ओढ़े आथे / घाम पहुना।

गुरतुर मया मोर मयारू के

‘मखना माढ़े सेठ के पेट कस’ जिहाँ प्रकृति के सुघरई ल बताथे उहें सोषक साहूकार ल घलो चित्रित करत हे। जेन बइठे-बइठे गरीब किसान मजदूर के लहू-पसीना ल चुहक के पेट ल बढ़ाय हे, अपन तिजोरी ल भरे हे। रमेश कुमार सोनी जी ह अपन हाइकु लेखन ले प्रकृति अउ मनखे के जिनगी के प्रभावी चित्र खींचे हे।

दूसर खंड ‘धान के कटोरा’ के हाइकु म कवि ह अपन हाइकु रचना ले छत्तीसगढ़ के चिन्हारी ल उजागर करे हे। इहाँ हमर जाँगर, श्रम के संगे-संग आलस अउ नवा जमाना के चाल-चलन, चरित्तर ल डाँड़-डाँड़ म उकेरे हे-

सोनहा गहूँ / सरसों के पिंयरी / माटी के रंग।

मुड़ी गड़ाव / मोबाइल के बुता / खेत परिया।

बियारा सुन्ना / करजा लील दिस / कका के पागा।

खेत अधिया / आधा पेट खाबे का? / बोनस पूरा।

गुरतुर मया मोर मयारू के

अब धान के कटोरा ह जुच्छा कटोरा भर रहिगे, धान ल तो परदेसिया मन लूट खइन। ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ के नारा लगाके। हम परबुधिया उन्खर नारा म मोहाके अपने अपघात करत हन। छत्तीसगढ़िया सीधा-साधा, भोला-भाला होथे। जाँगर पेर के घलो भूखे लाँघन सोथें। तेखरे सेती ओमन बढ़िया कथें। अपन खेत खार ल सोसक बेचके ओखरे बनी-भूति करत हन तेखरे सेती हम उन्खर बर बढ़िया हन। पता नहीं कब जागबो? हमला सावचेत करही, हमला जगाही त केवल साहित्य अउ साहित्यकार ह रमेश कुमार सोनी ह अपन ये उदीम म सफल दिखत हे।

‘मोर मयारू’ तीसर खंड में मया-पिरीत के रस भरे हे जेन ‘गुरतुर मया’ के पाग में जिनगी ल पागे हे । कहिथें कि राग,पाग अउ साग के फोरन एके बेर होथे। बनगे त बनगे, बिगड़गे त सरी जिनगी बर बिगड़गे। मया तो मया ये कभू मया पाके जिनगी फुरनाथे त कभू मया बिना नार कस अंइलाथे। अंइलाय मन ह पिरीत पानी पा के फुरना जाथे। देखव रमेश कुमार सोनी के मया के पाग, ‘गुरतुर मया’ के राग-

तोर देखती / आरूग होगे मन / सुरता मारे।

मया उल्होथे / सपना पिकियागे / संगी हाँसिस।

तोर घेंच ह / डारा कस लहसे / मया फरे हे।

तोर अगोरा / मोर दूध मोंगरा / मया बुढ़ागे।

मया चिन्हारी / सुरता पोटारे हे / तोर मुंदरी।

गुरतुर मया मोर मयारू के

मया जिनगी के सार ए, मया जिनगी के अधार ए, मया जिनगी के सिंगार ए, मया भाव के उद्गार ए। जेन मनखे मया ल जान लेथे ओहा मया ल भगवान मान लेथे। मया मनखेपन के चिन्हारी आए। ‘गुरतुर मया’ में मनखेपन के चिन्हारी जग-जग ले दिखत हे।

मया हे त मनखेपन जीयत जागत हे। हमर रिस्ता-नता मया के अधार ये, रिस्ता-नता ले मनखेपन पोठ होथे। ओखरे जग म गोठ होथे। ‘रिस्ता-नता के झाँपी’ म भाई रमेश कुमार सोनी ह हाइकु मन के सुग्घर जोरन जोरे हे। जेमा हमर लोक जीवन के सुघरई, लोक संस्कृति के उजरई मोंगरा कस ममहावत हे।

तीजा नेवता / लुगरा के अगोरा / गाँव म मेला।

दाई के मया / गाँव भर बगरे / अँचरा कोठी।

गर्मी के छुट्टी / तरिया घूमे जाथे / ममा के गाँव।

गुरतुर मया मोर मयारू के

कतका बारिक नजर हे रमेश कुमार सोनी के-जइसे गरमी के छुट्टी में लइका मन ममा गाँव घूमे ल चल देथें त गाँव सुन्ना हो जाथे ओइसने गरमी के सेती तरिया के पानी अँटा जाथे त तरिया सुक्खा पर जाथे त कोनो नई जावँय उहाँ। कतका सुग्घर मानवीयकरण हे प्रकृति के इही नजर ह कवि ल नजर म लाथे।

छत्तीसगढ़ के लोक परंपरा, लोक संस्कृति, लोक गीत, लोक परब अब नंदावत हे। पश्चिम के बड़ोरा में मइलावत हे। येहा कोनो भी रूप म बने नोहय। हमला अपन ‘हमर चिन्हारी’ अउ लोक के ऊपर गरब होना चाही इही हमर थाती आय। थाती के सुरता करत कवि ह गोहरावत हे-

मया दुलार / पुस पुन्नी बाँटथे / छेरछेरा में।

सुरुज उगे / हरबोलवा गाथे / रुख म चढ़े।

मया के गीत / चिरइय्या बिहान / जय गंगान।

फैसन लेगे / गँवई के अँजोर / बरी-बिजौरी

गुरतुर मया मोर मयारू के

कवि के संसो नंदावत संस्कृति बर जायज हे, आज फेसन के नाँव म देखव का-का होवत हे? हमर प्रकृति रही, हमर संस्कृति रही त  ‘मया के कुरिया’ रही। इही बात बर चेतलग करत भाई रमेश कुमार सोनी ह ‘मया के कुरिया’ खंड म हमर जिनगी के विसंगति, गति-दुरगति, छिन्न-भिन्न मति ऊपर हाइकु के जोर के सासन-प्रसासन अउ जन-जन के आँखी उघारे हे।

किसान कका / लीम म झुउल्म दिस / कर्जा लीलथे।

कर्जा डामर / पुरखा सिरा जाथे / नई टघलै।

दुःख चिन्हाथे / कोन हे तोर-मोर? / घर-बाहिर।

झन रपोट / दुनिया हे भोरहा / नंगरा जाबे।

गुरतुर मया मोर मयारू के

इही जिनगी के सिरतोन आय। सुख-दुःख के संग संझरे-मिंझरे बिन जिनगी नई पहाय न तन-मन ममहाय। मनखे ल मिंझर के रहना चाही, मनखे ल सुख होय के दुःख मुस्कात रहना चाही तभे जिनगी अलखेली पहाथे।  ‘गुरतुर मया’ के छेंवर खंड ‘मिंझराहा’ इही बताथे।

मया सिखाथे / ढाई आखर बोली / बोल के देख।

रद्दा के पेड़ /समधी भेंट होथें / हवा कराथे।

गोला-बंदूक /बस्तरिहा काँपय / लहू बोहाथे।

दाई के संसो / अँगना ह बँटागे / उठा ले राम।

गुरतुर मया मोर मयारू के

‘मिंझराहा’ खंड में सबो रंग, सबो किसम के हाइकु खमस मिंझरा हे तेन ह सऊँहे इन्द्रधनुष बरोबर लगथे। ‘गुरतुर मया’ म सिरतोन मया के मिठास हे, नवा सपना कस आस हे। एहा लोक जीवन के सिरजन आय जेन कोनो मेर गुरतुर हे त कोनो मेर चुरपुर हे। चुरपुर एखर सेती येमा हमर जिनगी के बिसंगति अउ विकृति के रंग घलो हे।

छंद के बंधना के सेती येमा लय हे। ‘गुरतुर मया’ के लय जग-जिनगी में गूँजत रहे। हाइकु सिरजन आघू बढ़त रहे इही कामना हे। ‘गुरतुर मया’ बर भाई रमेश कुमार सोनी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई। इंखर कलम सरलग चलत राहय अउ नवा जस गढ़त राहय; छत्तीसगढ़ के माटी के, संस्कृति के अउ प्रकृति के।

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