सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर
वो बेरा म जब जनरंजन के साधन बहुते कम रिहिसे, तब इहाँ के गाँव गाँव म बगरे छोटे छोटे भजन मंडली मन ही एकर पूरक के सबले बड़े माध्यम रिहिसे. ए मंडली वाले मन न सिरिफ राम, कृष्ण, शंकर, दुर्गा या अउ देवी-देवता मनले संबंधित आध्यात्मिक भजन के गायन-प्रदर्शन करॅंय, भलुक बेरा-बखत के गीत, जस, सोहर, फाग संग विविध गायन-वादन करॅंय वो बखत इंकर मनके रचनाकार जेला ए मंडली वाले मन उस्ताद या गुरु कहंय. उनमा तीन नॉंव प्रमुख रिहिस- बद्रीविशाल यदु ‘परमानंद’, सूरजबली शर्मा अउ हेमनाथ वर्मा ‘विकल’.
छत्तीसगढ़ के चारों खुंट करीब 120 भजन मंडली जे परमानंद भजन मंडली के नाम ले चलय, एमा के कतकों मंडली म मैं इन तीनों गुरु रचनाकार मनके फोटो ल एकसाथ फ्रेम कराए वाले देखे रेहेंव. आमतौर म लोगन इंकर लिखे रचना मनला तो सुनंय, फेर वोकर रचनाकार कोन आय, ए बात ल नइ जान पावत रिहिन हें, एकरे सेती वो मनला लोकगीत या लोकभजन के रूप म चिन्हारी मिल जावत रिहिसे.
हेमनाथ वर्मा ‘विकल’ के किताब ‘चुरुवा भर पानी’ के भूमिका लिखत वरिष्ठ साहित्यकार डा. विमल पाठक जी अइसने बखत के सुरता करत लिखे हें- मैं गाँव गाँव म भजन मंडली वाले मन के द्वारा रामचरितमानस के विविध प्रसंग ल छत्तीसगढ़ी म बड़ा तन्मयता के साथ सुनंव, फेर वोकर मनके रचनाकार कोन आय ए बात ल नइ जानत रेहेंव. फेर अब जब ‘विकल’ जी के रामचरितमानस के छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ‘चुरुवा भर पानी’ के भूमिका लिखत बेरा उंकर रचना मनला पढ़ेंव, त जानेंव के वो सब तो विकल जी के लिखे आय. तब मोला खुशी होइस, के मोर कवि मित्र के ए सब रचना आय, जेमन ल मैं लोकभजन अउ लोककवि के रूप भर म समझत रेहेंव.
भिलाई 3 के सियान इतवारी राम वर्मा अउ महतारी थनवारिन देवी घर 2 सितम्बर 1937 के जनमे हेमनाथ वर्मा ‘विकल’ के आमतौर म चिन्हारी भजन मंडली खातिर आध्यात्मिक रचनाकार के रूप म रिहिसे. फेर वोमन कवि मंच के लोकप्रिय हास्य कवि घलो रिहिन. मैं जब ‘मयारु माटी’ निकाले के चालू करेंव, अउ उंकर जगा गद्य साहित्य म बहुत कम लेखन होए के गोठ करेंव, त उन गद्य म हास्य-व्यंग्य घलो लिखत रिहिन हें, जेला हमन सरलग ‘मयारु माटी’ म छापत रेहेन. विकल जी गीत विधा के घलो जबर हस्ताक्षर रिहिन. उंकर गीत मनला चंदैनी गोंदा, आमामऊर, माटी के देवता, नवा अंजोरी पखरा फूल, मोर गंवई गाँव, तुलसी चौरा, नवा बिहान, अमरबेल, उवत किरन जइसन सांस्कृतिक मंच वाले मन तो गाबेच करंय कतकों पंडवानी लोककला मंच वाले मन घलो गावंय.
उंकर रचना मन हमर ‘मयारु माटी’ म तो छपबेच करय. एकर संगे-संग अउ कतकों पत्र-पत्रिका मन म घलो छपत राहय. वइसे उंकर दू किताब घलो छपे रिहिसे-1- पसर भर फूल, अउ 2- चुरुवा भर पानी. एकर मनके छोड़े श्रीकृष्ण चरित्र ऊपर आधारित ‘मनमोहना’, गद्य व्यंग्य मनके संग्रह, बालगीत संग्रह आदि आदि मन अउ छपे के अगोरा म रिहिसे. भरोसा हे, उंकर सांस्कृतिक विरासत ल आगू बढ़इया मन ए मुड़ा चेत करहीं अउ उंकर जम्मो रचना मनला प्रकाशन के अंजोर देखाहीं.
हेमनाथ वर्मा जी आकाशवाणी के घलो लोकप्रिय कवि रिहिन हें. उंकर रचना मन उहाँ ले सरलग प्रसारित होवत राहय. आवौ तिरिया जनम के दुख ल बतावत उंकर रचना के डांड़ देखिन-
होथे तिरिया जनम जी के काल ओ बहिनी लटपट पहाथे..
लाज रहिथे रहत अंहिवाल ओ बहिनी सुख दुख पहाथे
लेते जनम दुख दाई ददा ल
जवानी कांटा कस गड़े भाई ल
आरापारा चारी चले चाल ओ बहिनी घर-घर सुनाथे…
विकल जी राधा कृष्ण के लीला ऊपर गजबेच कलम चलाए हें. मुरली के जादू ऊपर उंकर डांड़ देखव-
तोर मुरली म का जादू भरे मोहना
सुध बुध हरागे ना
गाय गरू गेरुवा टोर भागे, चरत धेनु चारा तियागे
गोप गुवानिन बही बन दउड़े नंदलाला बंसी बट पउड़े
टोटका करे कस तंय जादू करे टोनहा
तोर मुरली म का जादू भरे मोहना..
विकल जी के किताब ‘चुरुवा भर पानी’ म तो रामचरितमानस के हर प्रसंग के सुग्घर सुग्घर चित्रण अउ लेखन हे. आवव देखिन वोमा के शिव जी के बरात म भड़ौनी वाले प्रसंग ल-
दाई ददा के नइए ठिकाना
फूटे भिंभोरा कस पिहरी हो
बन बन फिरे भभूत रमाए
नइये घर दुवार अउ डेहरी हो
गंजहा भंगहा दिखथस दुलरू
सांप बिच्छी ओरमाए हो
जकहा भूतहा कस रूप तुंहर हे
धर चिमटा हलाए हो
नाव बड़े हे दरसन छोटे
देवन म महादेवा हो
सउहे काल खड़े दिखथव
दुलहा देव जीवलेवा हो.
साहित्य के हर लगभग हर विधा म अपन कलम चलाइया हेमनाथ वर्मा ‘विकल’ पेशा ले शिक्षक रिहिन हें, जे ह उंकर बोली-बचन म जगजग ले दिखय. आध्यात्मिक रचना मन के माध्यम ले अध्यात्म के रद्दा धरे विकल जी 10 अप्रैल 2007 के ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले के परमधाम म आसन पागें.
आज उंकर बिदागरी तिथि म उंकर सुरता ल पैलगी-जोहार.