-सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर
मटपरई शिल्प कला ह सुने म थोकिन कुछू नेवरिया उदिम कस जनाही, फेर ए ह जुन्ना परंपरा आय. मोला सुरता हे- हमर महतारी ह गरमी के छुट्टी म बछर भर के सकेले जुन्ना कागज मनला पानी म बोर देवय तहाँ ले वोला कुछू जिनिस म गदगद ले कुचर के लुद्दी बना लेवय. फेर ए कागज के लुद्दी म खेत ले लाने करिया माटी, जेला हमन मुड़मिंजनी माटी घलो कहिथन ल बने कुचर के मिला देवय अउ फेर रोटी पोए बर पिसान ल बने मसल मसल के सानथन तइसने सानय. जब वो माटी अउ कागज के मिश्रण ह बने गुँथा जावय, तब कोनो करसी या मरकी ल उल्टा खपल के वोमा टोपली के आकार म थाप देवय.
अइसने कभू-कभू बिन माटी मिलाए आरुग कागज के टोपली घलो बनावय. कागज के बने टोपली ह बनेच हरू होथे, तेकर सेती एकर उपयोग करई ह सोहलियत जनावय. हमन तो करा बाँटी (कंचा) धरे बर घलो एकर उपयोग कर लेवत रेहेन. बोइर खोइला ल घलो लुका के धरे बर वोकर बने उपयोग होवय.
आज वैज्ञानिक आविष्कार के चलत टोपली जइसन जिनिस के विकल्प के रूप म कतकों जिनिस आगे हवय, तेकर सेती अब माटी अउ कागज के मिश्रण ले बनाय जाने वाला टोपली कहूँ देखब म नइ आवय.
अभी गाँव डुमरडीह (उतई) जिला दुर्ग के युवा कलाकार अभिषेक सपन ल मैं कागज के टोपली बनाय के बुता म नवाचार करत देखेंव त गजब निक लागिस. हमर दाई महतारी मन तो कागज अउ माटी ले टोपली भर बनावत रिहिन हें, फेर अभिषेक ह एक ले बढ़ के एक पुतरा पुतरी अउ खेलौना संग कतकों किसम के मयारुक जिनिस बनाथे. अभिषेक ह अपन ए नवाचार के प्रदर्शन ल कतकों जगा करत रहिथे. छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के बेरा म होवइया राज्योत्सव म घलो कर डारे हे. कतकों स्कूल अउ कॉलेज मन म अपन ए नवाचार के प्रशिक्षण दे के बुता घलो अभिषेक ह करत रहिथे.
अभिषेक बताथे के वो ह ए नवाचार जेला ‘मटपरई’ शिल्प कला कहे जाथे, एला बनाय म माटी अउ कागज के संगे-संग अरसी के खरी (घानी म तेल पेरे के बाद निकले अरसी के शेष भाग) के उपयोग करथे. वोकर कहना हे के अरसी के खरी मिलाय ले मटपरई शिल्प म कीरा-मकोरा के हमला जादा नइ होवय.
अभिषेक ए मटपरई शिल्प कला के क्षेत्र म आए के संबंध म बताथे के वोकर महतारी के मइके जेन रायपुर के कोटा म हे उहाँ वोकर ममादाई भगइया बाई ह मटपरई कला के अंतर्गत सुग्घर सुग्घर पुतरा पुतरी अउ आने खेलौना बनावय, जेला ए मन सबो भाई बहिनी मिल के पिड़उरी छूही, गेरू, चूरी रंग जइसन मयारुक रंग म रंगयँ किसम किसम के कलाकारी करँय अउ फेर बने बने कपड़ा लत्ता पहिरावँय अउ अपन महतारी संग धर के महादेव घाट के मेला म बेचे बर जावयँ. अभिषेक के ममियारो म चना, मुर्रा, लाई आदि फोर के पसरा लगावँय.
बछर 1979 म वोकर महतारी लीलादेवी के बिहाव उतई डुमरडीह जिला दुर्ग म होइस. इहाँ वोकर सास माने अभिषेक के बूढ़ीदाई राजिम बाई घलो मटपरई कला ले टुकना आदि बनावँय. ए किसम अभिषेक ल अपन महतारी के संगे-संग ममादाई अउ बूढ़ीदाई सबोच के कला विरासत अउ मार्गदर्शन मिलिस.
अभिषेक सपन ह आज मटपरई कला शिल्प ल एक मिशन अउ अभियान के रूप म आगू बढ़ावत हे. खुद घलो नवा नवा कलाकृति मन के सिरजन करत हे अउ नवा सिखइया लइका मनले घलो प्रेरित अउ प्रोत्साहित करत हे. वोकर ए नवाचार खातिर शुभकामना हे.