भोलाराम सिन्हा, गुरुजी, ग्राम- डाभा, (धमतरी)
जा रे मोर गीत तैं खदर बन जाबे
बिना घर के मनखे बर घर बन जाबे…
बने अस देखत जाबे कोनो भूख झन मरय
पेट के अगनिया बर लइका कोनो झन बेचय
अइसन कहूँ देखबे त चाउंर बन जाबे…
जा रे मोर गीत तैं खदर बन जाबे…
सुशील भोले के ए वो गीत आय, जेला आकाशवाणी ले प्रसारित कविता पाठ म सुन के मैं उंकर नाम ले पहिली बार परिचित होए रेहेंव. बाद म आकाशवाणी ले उंकर कतकों कविता पाठ के संगे-संग ढेंकी, एहवाती जइसन कतकों कहानी अउ वार्ता घलो सुने बर मिलिस. फेर उंकर संग पहिली बेर भेंट तब होइस, जब वोमन हमर ‘संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति मगरलोड के कार्यक्रम म पहुना बन के पहुंचीन. फेर तो लगातार भेंट-मुलाकात होए लागिस, काबर ते उन हमर संगम साहित्य के हर कार्यक्रम म आए लगिन. इहाँ रतिहा बिताए लगिन. तब उंकर संग म लगातार बइठे अउ गोठ बात के अवसर मिलत गिस. इही बेरा म उंकर सम्पूर्ण व्यक्तित्व कृतित्व ले परिचित घलो होएंव. एक बेर हमर गाँव डाभा म होए कवि सम्मेलन म घलो उन पहुंचे रिहिन हें, तब हमर घर म बइठे बर घलो पधारे रिहिन हें.
2 जुलाई सन् 1961 के महतारी उर्मिला देवी अउ पिता रामचंद्र वर्मा जी के दूसरा संतान के रूप म भाठापारा शहर म जनमे सुशील भोले जी के पैतृक गाँव रायपुर जिला के गाँव नगरगांव आय, जेन हमर राजधानी रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन ले उत्तर दिशा म करीब 10 कि.मी. के दुरिहा म हावय. इहाँ ए बताना बने जनावत हे के इंकरे मन के गाँव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा के खंड़ म वो जगा के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल बोहरही धाम हे.
सुशील भोले जी ल मैं साहित्यकार ले जादा इहाँ के अस्मिता के सजग प्रहरी जादा मानथौं. काबर ते उनला मैं इहाँ के मूल संस्कृति, जीवन पद्धति अउ उपासना विधि खातिर जादा काम करत देखे हौं. हमर इहाँ के कार्यक्रम म उन आवयं त इही विषय म उंकर उद्बोधन जादा सुने बर मिलय. वोमन एकर खातिर एक समिति ‘आदि धर्म जागृति संस्थान’ घलो बनाए हें, जेकर माध्यम ले जनजागरण के बुता करत रहिथें. ए विषय म उंकर चार डांड़ के सुरता आवत हे-
सुशील भोले के गुन लेवौ ये आय मोती बानी
सार-सार म सबो सार हे, नोहय कथा-कहानी
कहाँ भटकथस पोथी-पतरा अउ जंगल झाड़ी
बस अतके ल गांठ बांध लौ सिरतो बनहू ज्ञानी
भोले जी सन् 1983 ले दैनिक अखबार म जुड़े रहे हे, तेकर सेती उनला प्रकाशन के मंच घलो जल्दी मिलगे रिहिसे. उंकर रचना मन सन् 83 ले ही अखबार म छपे ले धर लिए रिहिसे. आकाशवाणी म घलो सन् 84 ले उंकर रचना के प्रसारण होवत हे. वोमन बतायंव- वो बखर कविता पाठ के जीवंत प्रसारण होवय. जीवंत माने, एती बोलत जा अउ वोती वोहा रेडियो ले सुनावत जाही. अब तो अइसन कोनो भी कार्यक्रम के पहिली रिकार्डिंग कर लिए जाथे. बाद म फेर वोकर प्रसारण होथे.
भोले जी के लगातार अखबार म जुड़े रहे के सेती छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य खातिर घलो बने काम होए हे. एक तो वोमन खुद छत्तीसगढ़ी म लगातार कालम लेखन करत राहंय, संग म हमर जइसन नवा लिखइया मनला प्रकाशन मंच दे खातिर छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट घलो निकालत राहंय. दैनिक अमृत संदेश म जब ‘अपन डेरा’ निकाले के चालू करिन, तब ले महूं ल अपन छत्तीसगढ़ी रचना मनला प्रकाशित करे खातिर एक अच्छा मंच मिले लागिस. वइसे इहाँ ए जानना महत्वपूर्ण हे, भोले जी छत्तीसगढ़ी भाषा के पहला सम्पूर्ण मासिक पत्रिका ‘मयारु माटी’ के स्वयं प्रकाशन-संपादन करे हें. 9 दिसम्बर 1987 ले शुरू होय मयारु माटी के ऐतिहासिक महत्व हे. तब वोमन अपन नाम सुशील वर्मा लिखत रहिन. बाद म आध्यात्मिक दीक्षा ले के बाद ‘वर्मा’ के जगा अपन इष्टदेव ‘भोले’ ल अपन पहचान बनाइन.
सुशील भोले जी सन् 1983 ले ही छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म जमीनी रूप ले जुड़गे रिहिन, तेकर सेती उंकर मन-मतिष्क ह पूरा के पूरा छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया होगे हे. वोमन कहिथें- छत्तीसगढ़ ह हर दृष्टि ले अतका समृद्ध हे, हमला कोनो किसम ले बाहिरी लोगन ऊपर आश्रित होए के जरूरत नइए. वोमन धर्म अउ संस्कृति के संबंध म घलो अइसने कहिथें- न तो हमला बाहिर के कोनो ग्रंथ चाही न संत चाही. इहाँ सबकुछ हे. बस जरूरी हे, त सिरिफ अपन मूल ल जाने, समझे अउ आत्मसात करे के. वोमन छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद घलो आज के राजनीतिक परिदृश्य ले संतुष्ट नइहें. वोमन कहिथें- हमर पुरखा मन जेन उद्देश्य ल लेके राज्य आन्दोलन के नेंव रचे रिहिन हें, वो तो कोनो मेर छाहित होवत नइ दिखत हे. आज घलो उहि परिदृश्य दिखथे, जेन राज्य बने के पहिली रिहिसे. ए विषय म उन एक गीत घलो लिखे हें, जेला कतकों मंच म सुने ले मिलय-
राज बनगे राज बनगे देखे सपना धुआँ होगे
चारोंमुड़ा कोलिहा मन के देखौ हुआँ हुआँ होगे…
का-का सपना देखे रहिन पुरखा अपन राज बर
नइ चाही उधार के राजा हमला सुख-सुराज बर
राजनीति के पासा लगथे महाभारत के जुआ होगे…
सुशील भोले जी के स्पष्ट कहना हे- जब तक छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति, भाषा अउ आध्यात्मिक जीवन पद्धति के स्वतंत्र पहचान नइ बन जाही, तब तक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के अवधारणा अधूरा रइही.
पाछू तीन-चार बछर ले उन लकवा रोग ले ग्रसित होय के सेती एक किसम के घर रखवार होगे हें. तभो ले उंकर छत्तीसगढ़ी खातिर निष्ठा अउ सक्रियता ह देखते बनथे. सोशलमीडिया म रोज बिहनिया चार डांड़ के कविता संग एक समसामयिक फोटो देख के गजब सुग्घर लागथे. अइसने उन जुन्ना बेरा के बात ल अउ वोकर संग जुड़े साहित्यकार कलाकार आदि मन के जेन जानकारी ‘सुरता’ के माध्यम ले देवत हें, वो ह हमर जइसन नवा पीढ़ी खातिर एक धरोहर के रूप म सदा दिन सुरता करे जाही.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी..