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Arai Tutari अरई तुतारी > Blog > लेख - आलेख > अक्षय फल के दाता अक्ति परब
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अक्षय फल के दाता अक्ति परब

Araitutari Editor By Araitutari Editor Published April 22, 2023
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akti tihar
अक्ती तिहार
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अशोक पटेल "आशु", तुस्मा, शिवरीनारायण

“अक्षय तृतीया” नाम से ही स्पष्ट हे। जेकर कोनो काल युग में कभी क्षय नई होवय। अक्षय तृतीया के अपन एक अलग महत्व हावय। जे तिथि म हमर हिंदु मन के सम्यक धार्मिक, सामाजिक, पौराणिक, पारम्परिक, सांस्कृतिक कार्य बिना कोनो बिघ्न बाधा के सम्पन्न हो जाथे।

अक्षय फल के दाता अक्ति परब

अक्षय तृतीया अपन आप मे अद्वितीय स्वयं सिद्ध होथे। ए तिथि म कोनो भी कारज करे के लिए दिन, तिथि, लग्न, घड़ी, पत्रा-पंचांग देखे के आवश्यकता नई रहय। ओहर अपन आप म सिद्ध हो जाथे।

अक्षय तृतीया के ए पावन परब हर बैसाख मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि ल मनाय जाथे। धर्म ग्रन्थ पुराण के अनुसार ए  माने जाथे कि ए  दिन जउन भी शुभ कारज करे जाए ओकर अक्षय फल मिल थे। अउ ए कारण से एला “अक्षय तृतीया”(अक्ति)  के नाम से जाने जाथे। अईसे माने जाथे की यदि ए परब हर शुक्ल पक्ष के तृतीया म हो जाए तो एला अड़बड़ शुभ माने जाथे।

अक्षय तृतीया चूंकि अपन आप म स्वयं सिद्ध होथे, इही कारण से ए दिन ल “सर्व सिद्ध मुहूर्त” के रूप म भी माने जाथे। अउ एकरे सेती ए तिथि म हमर हिंदू मन ल एकर विशेष अगोरा रहिथे। अउ बिना कोई पंचांग-पत्रा देखे शुभ कारज ल सम्पन्न करे जाथे। जेमा  मांगलिक कारज शादी-व्याह सहित गृह -प्रवेश नवा वस्त्र-आभूषण के खरीददारी आदि हो सकत हे।

हमर धर्म ग्रन्थ म अईसे उल्लेख हावय की इही दिन पितर मन ल तर्पण,पिंडदान या फेर कोनो प्रकार के करे गय दान-आदि के अक्षय फल प्राप्त होथे।

अउ अईसे  उल्लेख भी हावय-

“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥

उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः।तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

अक्षय फल के दाता अक्ति परब

इही दिन गंगा म स्नान-ध्यान, भगवान भजन करे म जन्म-जन्मांतर के जम्मो पाप हर धुल जाथे। अउ सच्चा मन से यदि भगवान से प्रार्थना करे जाए तो ओ जम्मो अपराध ल क्षमा कर देथे। एकरे सेती अईसे परम्परा हावय की जनमानस अपन लिए, अपन पुरखा के लिए मंगलकामना के प्रार्थना करथें।

अक्षय तृतीया के दिन वसन्त ऋतु के समापन और ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ काल माने जाथे। एकर सेती जल से भरे घड़ा, पंखा, छाता, शक्कर, इमली, सत्तू आदि जेकर से गर्मी से राहत मिलथे, ओकर दान करथें। अउ माने जाथे की जो वस्तु दान म दिए जाथे ओ सब हर अगले जन्म म प्राप्त होथे।

अक्षय तृतीया के धार्मिकता के दृष्टि से भी अड़बड़ महत्व हावय। इही तिथि म सतयुग और त्रेतायुग के आरम्भ काल, भगवान विष्णु के नर अवतार अउ हयग्रीव, परशुराम, ब्रम्हा पुत्र अक्षय कुमार, गंगा मईया, अन्नपुर्णा मईया के अवतरण दिवस भी माने जाथे। इही दिन द्रौपदी चीरहरण, कृष्ण सुदामा के मिलन, अउ कुबेर ल खजाना भी मिले रिसे। अउ आज ही के दिन प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्री नारायण के कपाट भी खुलथे। अउ आज ही के दिन वृंदावन म श्री बाँके-बिहारी के श्री विग्रह के दर्शन हो पाथे। अउ इही दिन महाभारत के अट्ठारह दिन के युद्ध भी समाप्त होय रिस।

अक्षय तृतीया के सामाजिक अउ सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्व हावय। इही दिन शादी-व्याह लग्न के मांगलिक कार्य सम्पन्न करे जाथे। पुतरी-पुतरा के विवाह पूरा रीति-रिवाज के साथ सम्पन्न करे जाथे। ताकि आने वाला नवा पीढ़ी हर सामाजिक परम्परा, रस्मो-रिवाज, के व्यवहारिकता ल सीख सकय। इही अक्षय तृतीया म किसान भाई मन एकत्रित होके अपन ग्राम के देवी-देवता, कुल देवता से मंगल प्रार्थना अउ अच्छा फसल होय के कामना करथें। बीज मन के मंत्रोंपचार करके खेत मे बीजारोपण के शुरुवात करथें। जेला हमर छत्तीसगढ़ म “मूंठ लेना” कहे जाथे। ए  प्रकार से कहे जा सकत हे कि अक्षय तृतीया के अपन सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व हावय। जे हर हमर सांस्कृतिक विरासत ल सहेज के रखे हावय। अउ हमन ल शुभ कार्य करे के मुहूर्त प्रदान करथे।

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Araitutari Editor April 22, 2023
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