सुशील भोले के कलम ले..
हर भाखा के अपन मौलिक परंपरा होथे, अउ वोला सुरक्षित रखे के जवाबदारी वो भाखा-संस्कृति ल जीयइया मन के होथे। छत्तीसगढ़ी म जब ककरो घर लइका होथे, त वो घर के सियान बताथे, हमर घर बाबू अवतरे हे, या नोनी अवतरे हे। वो ह लइका जनमे हे या जमने हे, नइ काहय।
अउ जब वोकर घर कोनो गाय-गरुवा ह जमनथे, त जरूर वो कहिथे, हमर गाय ह बछरू या बछिया जमने हे। माने मनखे के जनमे बर अवतरे अउ जानवर के जनमे बर जमने शब्द के प्रयोग करथे।
काली जुवर जब मैं एक बड़का लोगन के जनमदिन म बधाई देवत वोकर “अवतरण दिन” लिखेंव, त एक हिन्दी के बड़का विद्वान अवतरण शब्द गलत हे कहे लगिस। वो कहिस- अवतरे शब्द सिरिफ भगवान बर कहे जाथे, इंसान बर नहीं. मैं वोला कहेंव- छत्तीसगढ़ी के परंपरा तोला जाने बर लागही साहेब। हम छत्तीसगढ़ी भाषा-संस्कृति के पोठ रखवार ल बधाई दे हावन, त अवतरे शब्द के प्रयोग करे हावन। वो चुप रहिगे।
संगी हो हिन्दी या आने भाखा म भले ककरो जनम दिन ल अवतरण दिन कहना गलत हो सकथे, फेर छत्तीसगढ़ी म नइ होय। एकर सेती जरूरी हे, के हम अपन संस्कृति-परंपरा के पालन करन, दूसर भाखा के भेंड़िया धंसान म झन रेंगन।
सुशील भोले, संजय नगर रायपुर