छत्तीसगढ़ म कहरत हे पालेश्वर कलम
विजय मिश्रा ‘अमित’, पूर्व महाप्रबंधक (जन.), अग्रोहा कालोनी, रायपुर
इत्र हर जगह महकती है। उसी तरह शख्सियत की खुशबू को महकने से रोका नहीं जा सकता। इत्र और शख्सियत के अइसन गुन हर डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा जी के जिनगी ला परिभाषित करेे बर सटीक हावय।उंखर लिखे कहानी, कविता, निबंध, अऊ कतको दूसर रचना मन ह रहीम,कबीर,तुलसी, मुंशी प्रेमचंद, रविंद्र नाथ टैगोर,हजारी प्रसाद के लिखे कस कहरत हावय।
छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी भाखा ल पोठ रोंठ बनाए बर उंखर कलम हर दिन अउ रात, जियत मरत ले चलीस। “अपन हक बर लड़े ल परही सुतनिदहा मन जागा” ल लिख के पालेश्वर बाबूजी हर छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाए के जबड़ बूता करीस हावय।
पालेश्वर कलम के कमाल
रायपुर ले छप के चारों मुड़ा बगरोईया अखबार नवभारत म उंखर लिखे “गुड़ी के गोठ” ल पढ़े के ललक मोर भीतर म कूट कूट के भराए रहीस।मोला सुरता हे बिहनिया ले दुरूग के “हिंदी भवन ग्रंथालय” म खुले के पहली में हबर जांव। ग्रंथालय खुलय त सबले पहली खुसरवं।अव गुड़ी के गोठ पढ़े बर नवभारत ल हथिया लेवत रहें।मोला अइसे लागथे कि छत्तीसगढ़ी म गीत,गजल, कविता माने पद्य म अड़बड़ लिखे के कारज होवत हे, फेर गद्य म कहानी, नाटक, उपन्यास, व्यंग, संस्मरण, निबंध के लिखई हर कम होवत हे। छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत ल ए दसा ले उबारे बर, छत्तीसगढ़ी गद्य कोठी ल भरे बर “पालेश्वर कलम” हर कमाल करीस हावय।
छत्तीसगढ़िया गुनी जनमन पालेश्वर जी ल जीयत जागत ‘आखर कोठी,पोथी पुरान’ कहिथें। उंखर संग सीधा भेंट मुलाकात, गोठ बात, उंखर आसीस हर मोला एके दूं घवं थोरिक थोरिक माने दार म मिले नून कस मिलीस।बछर1985-86 के बात होही में हर राजनांदगांव के सर्वेश्वर दास नगर निगम स्कूल में मास्टर रहें। उही बेरा म शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के विद्यार्थी मन ह मोर लिखे- निर्देशित नाटक ‘हम पंछी एक डाल के’ ल युवा उत्सव बिलासपुर में प्रस्तुत करे रहीन। तभे दू-तीन दिन के उत्सव में कतको कलमकार, कलाकार सहित थोरिक देर बर डॉ पालेश्वर शर्मा जी संग तको संघराए के अवसर मिलीस। तभे ऊंखर ‘मिलिट्री मेन’ कस अंदाज, अवाज, अनुशासन सहित एके मनखे के भीतर अनेक गुन के खान के भान होगे रहीस।
धरम नहीं करम हर महान बनाथे
छत्तीसगढ़ के नामी सांस्कृतिक संस्था चंदैनी गोंदा अउ लोकनाट्य कारी के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख के संग म कई बछर रहे के मौका मिलीस। काबर कि ओखर सिरझे लोकनाट्य कारी म ‘सरपंच संग सूत्रधार’ के जबड़ रोल ल में करवं।तभे छत्तीसगढ़ के बड़े बड़े रचनाकार मन के नाम अउ काम के चरचा म पालेश्वर बाबूजी के नाम हर घेरी पइंत आवय।
उंखरे असन जबड़ साहित्यकार पण्डित श्याम लाल चतुर्वेदी, प्रो.राम नारायण शुक्ल जी के सानिध्य मोला बनेच घवं मिलीस। अइसनेहे कतको साहित्यकार मन के संगत आज ले मिलतेच हे।ओमन संग पालेश्वर जी के चरचा म ए बात हर छन के आथे कि ‘मनखे के धरम हर नहीं ओखर करम हर मनखे ल महान -अजर- अमर बनाथे’। डॉ. पालेश्वर हर छत्तीसगढ़ महतारी के अइसन मयारुक दुलरवा बेटा आए जेन हर छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत खातिर नवा रद्दा गढ़े के गूर अवइया पीढ़ी ल सिखा के सरग सिधारिस हे।
छत्तीसगढ़ राज ल बने पच्चीस बछर होवत हे फेर आज ले छत्तीसगढ़ी भाखा ल लेके खींचा तानी मचे हावय। हांसिल आइस अण्डा माने जीरो कस दसा हे।फेर पालेश्वर बाबूजी हर अंग्रेजी और हिंदी सहित दीगर भाखा के जानकार होए के बावजूद छत्तीसगढ़ी भाखा के महल खड़े करे बर जेन ‘पोक्खा नींव ‘ गढ़ीस हे तेन हर संदेसा देवत हे-कुछू काम करे बर मौसम नहीं मन होना चाही,साधन जम्मो जुट जाही बस मनखे के भीतर संकल्प के धन होना चाही।
पसीना म भींझ के रंचिस इतिहास
दाऊ रामचंद्र देशमुख के संगे संग मोर पिताजी नारायण स्वामी मिश्रा (नैला जांजगीर ) हर छत्तीसगढ़ के खेती किसानी के ऊपर बातचीत म मोला नवा नवा बात ल बतावय।ओखरे मुहू ले सुनेवं कि- खेती अपन सेथी, गाय ना गरु सूत जा हरू। अइसन गोठ बात के बेरा म पालेश्वर जी के शोध प्रबंध ‘छत्तीसगढ़ के कृषक जीवन’ के चरचा जम के चलय। किसान के नांगर अउ जांगर के ऊपर जी परान ले लिखे के जेन बूता पालेश्वर जी करीन हें तेला सुने-गुने- पढ़े के पाछु इही बात हर मन म आथे कि जेन हर बरखा के बरसे पानी म भींझथे, तेन हर खाली अंगरक्खा ल बदलथे।फेर जेन हर पछीना म भींजथे तेने हर पालेश्वर बनके नवा इतिहास गढ़थे।
प्रेम साईमन के लिखे लोकनाट्य कारी म एक ठिन दृश्य हे जेमा नायिका कारी अउ नायक बिसेसर हर पारा भर के लइका मन संग दल बनाके कबड्डी खेलत रहिथें।तभे बिसेसर के महतारी आमादाई हर आ जाथे अउ अपन बेटा के कान ल उमेटत कहिथे -कस रे हूड़मा बहुरिया ल कबड्डी खेलावत हस तोला थोरको लाज सरम नी लागत हे।ए सीन के चरचा करत, कठल कठल के हांसत गोठियावत पं श्याम लाल चतुर्वेदी,प्रो. रामनारायण शुक्ला जी बताय रहिन कि पालेश्वर जी के मास्टरी उंच डंगनी कूद,कबड्डी म जोरदार रहीस।उंखर इही आदत-बिचार- दिनचर्या हर पालेश्वर जी ल हिट अउ फीट बनाके राखे रहीस।
छत्तीसगढ़ी भाखा के खेवनहार
एक ठिन कवि सम्मेलन म शामिल होय बर रामेश्वर वैष्णव अउ मीर अली मीर जी के साथ जात रहें। तभे रद्दा म खेत म बड़ अकन कोंकड़ा कस चिरई दिखीन। चिरई मन के ऊपर चर्चा करत ओमन ह पालेश्वर जी के किताब ‘सुसक झन कुररी !सुरता ले’ के चर्चा छेड़ीन।तब मेहर जानेवं कि प्रवासी पक्षी मन ल छत्तीसगढ़ी म ‘कुररी’ कहे जाथे। अइसनेहे एक ठिन अउ नवा बात जाने के सुरता आवत हे।पढ़े लिखे के पाछु जब नौकरी चाकरी बर फारम भरवं त मातृभाषा हिन्दी लिखवं।फेर एक घवं दाऊ देशमुख हर बताईस कि पालेश्वर शर्मा जी कस गुनीजन के कहना हे कि छत्तीसगढ़िया मन ल अपन मातृभाषा छत्तीसगढ़ी लिखना चाही।
डॉ पालेश्वर जी बर लिखत लिखत मोला शक्ति रियासत के राज पुरोहित मोर नाना पंडित शिवकुमार चतुर्वेदी के एक ठिन गुने लाइक गोठ हर तको सुरता आवत हे।ओ हर कहय कि छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म करोड़ झन पहिली ले जनमे हावयं तभो ले तोर जनम काबर होइस हे तेला सुन। असल म तोर ले पहली जनमे मन ल जेन काम करना रहीस तेन ल ओमन ह नी करे पाइन हें।त तोर पुरखा के छोंड़े बुता ल तोला पूरा करना हे। छत्तीसगढ़ महतारी के ऋण चुकाए बर ओखर मान बढ़ाए बर कुछू अईसे करना हे जेन ल आज ले कोनो नी करे हावय।नाना जी के कहे ए गोठ ल गुनथों त अइसे लागथे जानो मानो ओहर डॉ पालेश्वर जी मन कस मनखे मन बर ए बात ल कहे हे।जेन हर छत्तीसगढ़िया मन ल सबले बढ़िया बनाए बर अपन सरी जिनगी ल हूम कर दीस हे। छत्तीसगढ़ महतारी, ओखर बानी छत्तीसगढ़ी साहित्य के अइसन खेवनहार बनीस जेकर लिखे आखर हर अटूट पतवार बनके कभू छत्तीसगढ़ी साहित्य के डोंगा ल बुड़न नी देवय।
गोरस म पागे मखना कस साहित्य लिखोइया
डॉ पालेश्वर शर्मा के लिखे हरेक रचना हर गोरस म पागे मखना कस सवाद देथे। तभे तो एक घवं हाथ म आथे त आखरी पन्ना के सिरावत ले पढ़ोइया हर छोंड़य नहीं। किताब ल छोंड़ भी देथे त दिमाग हर किताब म लिखाए बात हर गुजंत रहिथे।नानपन ले जानत रहें कि छत्तीसगढ ल धान के कटोरा कहे जाथे, फेर धान के कटोरा काबर कहे जाथे? धान के बोंआई ले मिंजाई कुटाई के कारज हर कइसे होथे? कोन-कोन किसीम के अवजार ले खेती किसानी के कारज होथे?इंखर ले जूड़े हाना- जनऊला के गियान हर पालेश्वर जी के किताब ‘छत्तीसगढ़ के कृषक जीवन की शब्दावली’ ले मिलथे। किसान के नांगर अउर जांगर ले जादा बालेश्वर जी के कलम हर छत्तीसगढ़ के किसानी ल जनवाए खातिर बड़का बूता करिस हावय।ए ग्रंथ के ग्यारह अध्याय हर कांख काख के बताथे कि- जेखर हंथेली म लकीर नहीं छाला रहीस ओखरे नाव पालेश्वर रहीस।
जिहां जनमे,जिहां के खाए पीए उहीं के गुन गाबे बजाबे इही म जिनगी के सार हे अउ नहीं त चौरासी लाख जोनि म सबले बढ़िया जनम मिले हावय तेन ह बेकार हे।अइसन संदेसा देवइया सियान,
छत्तीसगढ़ भूइयां के लाल हर 2 जनवरी 2016 के दिन सदा दिन बर बिदा ले लेहे रहिस। आखिर म कलम के अइसन पूजेरी ल जोहार करत अपन कलम ल बिराम देवत लिखत हवं – नंगा लेहू कलम ल कलमकार से, त ओहर लिख देही कविता तलवार से