राजकुमार निषाद ‘राज’, बिरोदा धमधा, दुर्ग
आगे किसानी कमाबो तभे जी,
मिले दाम चोखा लगाबो बने धान।
रापा कुदारी धरौ हाथ संगी चलौ
खेत कोती किसानी करौ ध्यान।
पानी गिरे हे बने धान होही
सबो खेत पानी भरे हे इहाँ तान।
आथे मजा गा किसानी म संगी
मिलौ आज माटी म काया बने सान।