अपन सोन खोंटहा, अऊ सोनार ल दोष
खुद की गलती और दूसरे पर दोष मढना।
अंधरा बर खंचवा – डिपरा एके बरोबर
अंधे के लिए सब एक समान
अंधरा गुरू के भैरा चेला, मांगिस भेला त धराईस ढ़ेला
अंधे राजा में काना राजा
आंखी दिखे न कान, बिन-बिन खाए आन
अपना दोष ज्ञात न होना
आगी लगै तोर पोथी म, जीव गे हे मोर रोटी म
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
आइस रे मुड़ढक्की रोग, बाढ़े बेटा ल लेगे चोर
शादी के बाद बेटे का पराया हो जाना
बैरी खोजे दांव, अऊ माछी खोजै घाव
स्वार्थ सिद्धि के लिए अवसर की प्रतीक्षा
बिन मेछा के जवान, अऊ बिन सुपारी पान नई फभै
सुरंगति का प्रभाव अवश्य दिखता है
बड़े संग खाए बीरा पान, छोटे संग म कटाए दूनों कान
कुशंगति का परिणाम अपयशकारी होता है
बुढ़वा के संग, त पइसा के तंग.. जवान के संग, त बाजे मिरदंग
समर्थ की संगति में आनंद ही आनंद है
भईंसा के लड़ाई म बारी के उजार
दूसरे के लिए बेकसूर को नुकसान उठाना पड़ता है
छी छी कहे, छितका भर खाय
बुराई करना और बुराई के संगत रखना
दांत हे त चना नहीं, चना हे त दांत नहीं
साधन न होने पर राह नहीं और संकट आने पर साधन का न होना
दिन के एती-तेती अऊ रात के सुतंव कती
सुख के समय किसी भी प्रकार का कट जाता है पर दुख में आश्रय के संकट का ज्ञान होता है।
धान के कोठी म मूसवा ह गिर के मरै
अत्यधिक विपन्नता
जइसन जेखर दाई ददा, तइसन तेखर लईका
जईसन जेखर घर कुरिया, तइसन तेखर फइका
वंशानुक्रम का प्रभाव अवश्य दिखाई पड़ता है।
का अंधरा के जागे अऊ का अंधरा के सूते
अंधे की पहरेदारी पर भसोरा निरर्थक है
कोरा म लईका गांव भर हिंडोहल
आसपास देखने के बजाय इधर उधर भटकना
ममा फूफू हा-हा छू-छू
अपने में तू तू मैं मैं होना लगा ही रहता है।
मउका परे म कोलिहा ल ददा कहे बर परथे
संकट आने पर शत्रु की भी सलाह मानानी पड़ती है।