महेन्द्र देवांगन "माटी"
जिला - कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
हमर देश में छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान हे। इंहा के संस्कृति, रिती रिवाज, भाखा बोली, मंदिर देवाला, तीरथ धाम, नदियां नरवा, जंगल पहाड़ सबके अलगे पहिचान हे। हमर छत्तीसगढ़ में कोनों चीज के कमी नइहे। फेर एकर सही उपयोग करे के जरुरत हे। इंहा के परयटन स्थल मन ल विकसित करे के जरुरत हे।
बहुत अकन परयटन स्थल के विकास अभी भी नइ होहे। जब तक सरकार ह एकर ऊपर धियान नइ दिही तब तक एकर विकास नइ हो सके। कबीरधाम जिला में एक जगा हे भोरमदेव एला छत्तीसगढ़ के खजुराहो भी कहे जाथे। काबर कि जइसे खजुराहो के मंदिर में चित्रकला उकेरे गेहे ओइसने चित्रकला इंहा के मंदिर में भी देखे बर मिलथे।
भोरमदेव ह कवर्धा से 17 कि. मी. दूर घना जंगल के बीच में स्थापित हे।इंहा जाय बर पक्की सड़क बन गेहे अऊ मोटर गाड़ी के बेवस्था घलो हे। आजकाल जंगल भी कटा गेहे त जंगली जानवर के उतना डर नइहे । पहिली के सियान मन बताथे कि भोरमदेव के तीर में जाय बर आदमी मन डरराय। काबर कि उंहा घनघोर जंगल रिहिसे अऊ जंगली जानवर शेर भालू के डेरा रिहिसे। अब मनखे के आना जाना बाढ़गे अऊ जंगल ह कटागे त जानवर मन के भी अता पता नइ चले।
प्राचीन मंदिर
भोरमदेव मंदिर ह बहुत प्राचीन मंदिर हरे। मंदिर के अंदर में शिवलिंग स्थापित हे। इंहा के मूरतीकला अऊ सुंदरता ह देसभर में परसिद्ध हे। एहा जैन, वैष्णव, शैव सबो मत के आदमी के तीरथधाम हरे। इंहा सब परकार के मूरती लगे हुए हे। ये मंदिर ल नागवंशी राजा देवराय ह 11 वीं सताब्दी में बनवाय रिहिसे।
भोरमदेव नाम कइसे परीस
भोरमदेव नाम के पिछे कहे जाथे कि गोंड राजा मन के देवता शिवजी हरे, जेला बूढ़ादेव, बड़ेदेव अऊ भोरमदेव भी कहे जाथे । एकरे सेती एकर नाम भोरमदेव परीस ।
कला शैली
मंदिर के मुंहू पूर्व दिसा के डाहर हे। ए मंदिर ह नागर सैली के सुंदर उदाहरन हरे। मंदिर में तीन तरफ से परवेस करे जा सकथे। एला पांच फूट ऊंचा चबूतरा में बनाय गेहे। अइसने मंदिर बहुत कम देखे बर मिलथे। मंडप के लंबाई ह 60 फूट अऊ चौड़ाई ह 40 फूट हे। मंडप के बीच में चार खंभा अऊ किनारे में 12 खंभा बनाय गेहे। जेहा मंदिर के छत ल सम्हाल के रखे हे। सब खंभा में बहुत ही सुंदर चित्र बनाय गेहे। मंडप में लछमी बिसनु अऊ गरुड़ के मूरती रखे गेहे। भगवान के धियान में बइठे एक राजपुरुस के मूरती भी रखे हुए हे।
गर्भगृह
मंदिर के गर्भगृह में बहुत अकन मूरती रखे गेहे अऊ एकर बीच में शिवलिंग स्थापित करे गेहे। पंचमुखी नाग अऊ गनेस जी के मूरती भी रखाय हे।
बाहरी दीवार
मंदिर के चारो डाहर बाहरी दीवार में शिव, चामुंडा, गनेस, लछमी, बिसनु, वामन अवतार आदि के मूरती लगे हुए हे।
मड़वा महल
भोरमदेव मंदिर से एक किलोमीटर के धुरिहा में एक ठन अऊ शिव मंदिर हे जेला मड़वा महल या दूल्हा देव मंदिर के नाम से जाने जाथे। ए मंदिर के निरमान ल 1349 ई. में फनी नागवंशी शासक राजा रामचंद्र देव करवाय रिहिसे। कहे जाथे ए मंदिर के निरमान ल अपन बिहाव के उपलक्छ में करवाय रिहिसे। माने ओकर बिहाव ह इही जगा में होय रिहिसे। मड़वा के मतलब होथे मंडप। जेला बिहाव के समय में बनाय जाथे। स्थानीय बोली में एला मड़वा कहे जाथे। एकरे पाय एला मड़वा महल के नाम से जाने जाथे। मड़वा महल के बाहरी दीवार में 54 ठन कामसूत्र के मूरती उकेरे गेहे। एकर माध्यम से समाज में स्थापित गृहस्थ जीवन के अंतरंगता ल दरसाय गेहे।
छेरकी महल
भोरमदेव मंदिर के दक्षिन पश्चिम दिशा में एक किलोमीटर के धुरिहा में एक अऊ मंदिर हे जेला छेरकी महल के नाम से जाने जाथे। ए मंदिर के निरमान भी फनी नागवंशी राजा के शासन काल में होहे। अइसे बताय जाथे कि ए मंदिर के निरमान ल बकरी चरवाहा मन के लिये बनाय गे रिहिसे। ताकि बकरी चरात चरात इंहा बइठ के सुरता सके। छत्तीसगढ़ी में बकरी ल छेरी कहे जाथे। एकरे पाय ए महल के नाम छेरकी महल परे हे।
भोरमदेव महोत्सव
भोरमदेव के विकास करे बर सरकार ह हर संभव परयास करत हे। इंहा के सुंदरता ल बढ़ाय खातिर अऊ परयटक मन ल आकरसित करे बर चैत मास में भोरमदेव महोत्सव के भी आयोजन करे जाथे। जेमे छत्तीसगढ़ अऊ बाहिर के कलाकार मन ह आके अपन कला के परदरसन करथे।
आवासीय सुविधा
इंहा परयटक मन के लिए रुके के भी बेवस्था करे गेहे। लोक निरमान विभाग ह विसराम घर भी बनाहे ।जिला मुख्यालय कवर्धा में भी विसराम घर, होटल अऊ लाज के बेवस्था हे।
पहुंचे के रास्ता
भोरमदेव रायपुर से 135 किलोमीटर के दूरी में हे। दुरुग भिलाई से भी लगभग ओतकीच धुरिहा परही। इंहा जाय बर पक्की सड़क अऊ यात्री बस के सुविधा हे।