हेमलाल सहारे, मोहगांव (छुरिया), राजनांदगाँव
अब गरमी ह दिनों दिन नंगत के बाढ़त हे। अइसन बेरा म नदी, नरवा, तरिया अउ कई ठन पानी के नान्हें-नान्हें सरोत मन घलो ठकठक ले सूखा हो जथे। कतको जीव-जंतु, गाय-गरवा, चिरई-चिरगुन संग सबे जीव मन ल पानी बर अब्बड़ कसट करे ल पड़थे।
गरमी म चिरई-चिरगुन बर पानी
पानी सबो जीव के आधार आये। येकर बिन जिनगी के कल्पना करना बिरथा हे। गरमी के बाढ़त बेरा म हमन अपन घर के तीर बाहिर म धमेला म, छत के ऊपर, कोनो पेड़ म ठेका बांध के, मटका म पानी रख के चिरई-चिरगुन अउ दूसर नांन्हे जीव मन बर पानी भर के रख के जीव दया भाव के करतबय निभा सकत हन। जेमे कोनो खरचा घलो नई हे। ये सब समान मन घर म रहे रथे।
गरमी के दिन म जादा चिरई मन पियास ले अचेत सड़क, रदा म पड़े दिखे ले मन म अब्बड़ दुख होथे। ये मन ह नांन्हे अउ बड़ नाजुक जीव हरे। थोरको पीरा ल नई सहे पाये, अउ रुख के सुख्खा पाना कस गिर जाथे। येकर जीव बचाये बर हमन पानी अउ हो सके ते दाना के बेवस्था घलो कर सकत हन। जेकर ले येमन ल कुछु राहत जरूर मिलही।
येमन अइसन बेवस्था ल देख के जरूर खुश हो जाहि। उंकर मन कतका गदगद होही उही मन जानहि। अईसे तो चिरई-चिरगुन मन हमरे आसपास रहवइया परोसी जीव तो आय। बिपत परे म पोठ परोसी मन काम नई आहि त कोन आहि। हमन ल बिहिनिया बेरा अपन सुहावन कलरव ले गीत सुनाथे, हमन ल सोये म जगाथे। बिहने ले नवा उमंग, आशा, अउ दिन भर के बुता करे बर नवा बल इंकरे ले तो मिलथे। अतकी म मन परसन्न हो जाथे।
आमा खात कोयली, निभौरी खात पडकी मैना, कोवा ल खात मिठ्ठू, धान के झूल म झूलत गोड़ेला, उच्ची, परेवा, रमली के बोली मन ल मोहित कर डारथे। अइसन गुरतुर बोली ले वातावरण ल गमकैया जीव मन ल कतको झन निसमझि मन ह गुलेल गोटी धरके पेड़ पेड़ म घुमत रथे। ये काम कोई भी तरीके ल सही नई हे। ये निर्बाद गीत गैवैया, मासूम, नाजुक, निरदोस जीव मन ककरो का बिगाड़ करे होही। सजग मनखे मन ल रोके के परयास बर आगू आय ल पड़हि नहिते इंकर भाखा-बोली बर तरसे ल पड़ही।
गरमी म कतरो जंगल के नांन्हे जीव मन पानी के तलास म गांव तरिया, नदिया, नाला तक पहुँच जथे। इंकर मन मे कभू गांव के कुकुर, कभू मनखे मन हमला कर देते। यहू बने बात नोहे। पियासे जीव ल पानी, भूखे ल जेवन हमर मानव संसकिरिती आये। जेकर पालन हम सब ल करे के धरम होना चाही। तभे तो सब जीव एक समान के भाव मजबूत होही।