परंपरा के गोठ: सुशील भोले के कलम ले..
हमर संस्कृति म आगी माँगे के घलो परंपरा हे, फेर ए ह अब कोनो नेंग-जोग के बेरा भले दिख जाथे, तहाँ आने बेरा म तो नंदाय बरोबर होगे हे.हमन लइका राहन. गाँव म राहन, त रोज संझा अरोस-परोस के चार-पांच झन माईलोगिन मन छेना धर के हमर घर आवय, हमर बूढ़ी दाई संग ससन भर के गोठियावय. साग-भाजी के गोठ होवय, संग म नान-मुन कुछू काम-बुता राहय तेनो ल सिध पार देवंय, तहाँ ले छेना म अंगरा के नान्हे टुकड़ा ल धर के चले जावंय. ए ह रोज के बुता राहय. हमरो डोकरी दाई ह गोरसी म सिपचा सिपचा के आगी राखे राहय.
जिहां तक धर्म अउ संस्कृति के बात हवय, त एमा तो ए आगी माँगे के बहुतेच महत्व हे. नवरात्रि म होवय, होरी जइसन परब म होवय या फेर ककरो घर बर-बिहाव होवत राहय त अइसन बेरा म कोनो सिद्ध बइगा-गुनिया या फेर मंदिर के कुंड आदि ले आगी लान के आगी सिपचाए या ज्योति प्रज्वलित करे के परंपरा आजो दिखथे. बिहतरा घर के चूल ल बइगा घर ले लाने आगी ले ही सिपचाए जाथे.
एकर पाछू सिरिफ अतके भावना होथे, के हम अपन शुभ कारज के शुरुआत अइसन मनखे या जगा के माध्यम ले करत हावन, जेकर ले मन म ए भरोसा राहय के वोकर सिद्धी के परिणाम हमरो खातिर शुभ रइही.
कतकों लोगन एला अंधविश्वास के श्रेणी म राख सकथें. कतकों झन इहू कहि सकथें- जे मन खुदे मंत्र सिद्धी कर डारे हें, वोमन ल कोनो दूसर मनखे या जगा ले आगी लाने के का जरूरत हे? उंकर कहना वाजिब घलो आय. फेर मोला लागथे, कतकों बेरा म अपन तर्क शक्ति ल कोनो कोनहा म मढ़ा के पुरखौती परंपरा ल आगू बढ़ाय के उदिम करत रहना चाही.
आज तो आगी बारे के कतकों जिनिस के आविष्कार होगे हावय. तभो ले अपन परोसी घर ले आगी माँग के लाने अउ इही बहाना वोकर संग सुख-दुख के बात कर ले के जेन आनंद अउ मजा हे, वोहा अद्भुत हे. खासकर आज के बिखरत संयुक्त परिवार के बेरा म तो अउ जादा.
सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर