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Arai Tutari अरई तुतारी > Blog > पुरखा के सुरता > शब्दभेदी बाण चलइया कोदूराम जी वर्मा….
पुरखा के सुरता

शब्दभेदी बाण चलइया कोदूराम जी वर्मा….

Araitutari Editor By Araitutari Editor Published April 22, 2023
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सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर

हमन लइका राहन त हमर गाँव नगरगाँव म हर बछर नवधा रामायण के कार्यक्रम देखन-सुनन. एकर आखिरी दिन एक झन सियान के धनुस बान के कार्यक्रम देखन. उंकर आंखी म कपड़ा के टोपा बांध देवंय, तहाँ ले दू तीन भांवर किंजार देवंय. वोकर बाद एक ठन लकड़ी म सूंत बंधे नान्हे लकड़ी ल घुमावंय, फेर एक आने मनखे ह वो सूंत बंधाय लकड़ी तीर जाके एक ठन गिलास ल बजावय. तहाँ ले आंखी म टोपा बंधाय सियान ह वो गिलास बाजे के दिशा म किंजर के अपन हाथ म धरे धनुस ले बान ल छोड़ देवंय. देखते देखत वो बान ह जेमा धारदार लोहा के एक टुकड़ा लगे राहय, तेमा वो घूमत सूंत ह कटा के गिर जावय.

लोगन खुश होके ताली बजावंय. हमूं मन बजावन, फेर वो लइकई अवस्था म वोकर महत्व ल नइ समझत राहन. जब धीरे धीरे बड़े होवत गेन, अउ एकरे संग समझ बाढ़त गिस त जानेन के वो ह शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन रहिस हे. जइसे के नवधा रामायण म सुनन के राजा दशरथ ह हिरन के भोरहा म अपन भांचा श्रवण कुमार ल मार परे रिहिसे.

बाद म तो साहित्यिक अउ सामाजिक गतिविधि म सक्रिय होए के बाद वो शब्दभेदी बाण के संधानकर्ता कोदूराम वर्मा जी के कार्यक्रम ल कतकों जगा देखे बर मिलिस. उंकर गाँव भिंभौरी म मोर एक साढ़ूभाई राहय, तेकरो सेती भिंभौरी जाना होवय. उहों कतकों बखत भेंट मुलाकात हो जावय.

साहित्य के संगे संग मैं पत्रकारिता ले घलो जुड़े रेहेंव, जेमा कला साहित्य संस्कृति वाले अंक ल महीं देखंव. एमा छत्तीसगढ़ी के कलाकार मन के मुंहाचाही घलो छापन. मन म कोदूराम जी के मुंहाचाही (साक्षात्कार) छापे के विचार रिहिस. तभे मगरलोड के संगम साहित्य संस्कृति समिति के सचिव पुनूराम साहू ‘राज’ जी के मोर जगा फोन आइस. उन बताइन के उंकर 2015 के स्थापना दिवस कार्यक्रम जेन हर बछर 13 अक्टूबर के होथे, वोमा ए बछर आदरणीय कोदूराम जी वर्मा ल ‘संगम कला सम्मान’ देबोन काहत मोला कोदूराम जी ल रायपुर ले अपन संग मगरलोड लेगे के जिम्मेदारी देइन.

मैं तुरते तइयार होगेंव, अउ उनला फोन लगाएंव त उन बताइन के मैं अभी गाँव के आश्रम म हंव, 13 के रायपुर आहूं तहाँ ले संग म चल देबोन. 13 तारीख के बिहनिया ले कोदूराम जी के ही फोन आगे. उन कहिन के मैं तो रायपुर पहुँच गे हंव, शालिक घर (शालिक राम जी वर्मा उंकर ज्येष्ठ पुत्र आंय, जेन रायपुर के डंगनिया म रहिथें) हंव. मैं उनला अपन घर संजय नगर आए बर अरजी करेंव, त उन आइन. पांच मिनट हमर घर बइठिन, तहाँ ले मगरलोड बर निकलगेन.

रद्दा भर मैं उंकर संग मुंहाचाही करे लगेंव. मोर मन म शब्दभेदी बाण के बारे म जाने के बड़ इच्छा रिहिस, तेकर सेती सवाल इहें ले चालू करेंव, त उन बताइन के वइसे तो मैं लोककला के क्षेत्र म पहिली आएंव. जब मैं 18 बछर के रेहेंव, त आज जइसन किसम किसम के बाजा रूंजी नइ राहत रिहिसे. वो बखत सिरिफ पारंपरिक बाजा- करताल, तम्बुरा आदि ही मुख्य रूप ले राहय. एकरे सेती मैं करताल अउ तम्बुरा के संग भजन गाए बर चालू करेंव. अध्यात्म डहर मोर झुकाव पहिलीच ले रिहिसे, तेकर सेती मोर कला के शुरुआत भजन के माध्यम ले होइस.

वोकर पाछू सन् 1947-48 के मैं नाचा डहर आकर्षित होएंव. नाचा म मैं जोक्कड़ बनंव. पहिली एमा खड़े साज के चलन रिहिसे, फेर हमन दाऊ मंदरा जी ले प्रभावित होके तबला हारमोनियम संग बइठ के प्रस्तुति दे लागेन. वो बखत ब्रिटिश शासन अउ मालगुजारी प्रथा रिहिसे तेकर सेती हमर मन के विषय घलो एकरे मन ले संबंधित रहय.

कोदूराम जी आकाशवाणी के घलो गायक कलाकार रहिन. उन बताइन के, सन् 1955-56 म मैं लोक कलाकार के रूप म आकाशवाणी म पंजीकृत होगे रेहेंव. फेर मैं उहाँ जादा करके भजने गावंव. मोर भजन म – ‘अंधाधुंध अंधियारा, कोई जाने न जानन हारा’, ‘भजन बिना हीरा जनम गंवाया’ जइसन भजन मन वो बखत भारी लोकप्रिय होए रिहिसे.

कोदूराम जी दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के ‘चंदैनी गोंदा’ ले प्रभावित हो के ‘गंवई के फूल’ नाव ले एक सांस्कृतिक दल घलो बनाए रिहिन हें, जेमा 40-45 कलाकार राहंय. तब कला अउ कलाकार मन के गौरवशाली रूप देखे बर मिलय. कोदूराम जी अब के कलाकार अउ उंकर प्रस्तुति ले भारी नाराज राहंय. उन शासन ल ए डहर चेत करे के घलो अरजी करंय, तेमा कला के गौरवशाली रूप ल फिर से देखे जा सकय.

उन शब्दभेदी बाण सीखे के बात म आइन. उन बताइन के वो बखत मैं भजन गावंव, वोकर संगे-संग दुरुग वाले हीरालाल शास्त्री जी के रामायण सेवा समिति संग घलो जुड़े राहंव. उही बखत उत्तर प्रदेश ले बालकृष्ण शर्मा जी आए रिहिन. जब शास्त्री जी रामायण के प्रस्तुति करयं, वोकर आखिर म बालकृष्ण जी शब्दभेदी बाण के प्रस्तुति करंय. मैं उंकर ले भारी प्रभावित होएंव, तहाँ ले उही मन ले तीन महीना के कठिन अभ्यास ले महूं शब्दभेदी बाण चलाए बर सीख गेंव.

उन बताइन के शब्दभेदी बाण चलई ह सिरिफ कला के प्रदर्शन नोहय, भलुक एक साधना आय. एकर बर हर किसम के दुर्व्यसन मन ले मुक्त होना परथे. उन बतावंय के बाद म उंकर जगा कतकों झन शब्दभेदी बाण सीखे खातिर आवंव फेर साधना म कमजोर रहे के सेती कोनों पूरा पारंगत नइ हो पाइन. (ये इंटरव्यू ले के बहुत बाद म पता चलिस के कोदूराम जी के बड़े बेटा शालिक राम जी वर्मा शब्दभेदी बान चलाए बर सीख गये हें, अउ कोनो कोनो जगा वोकर प्रदर्शन करथें. फेर मोला अभी तक उंकर ए ज्ञान-कला ल प्रत्यक्ष देखे के अवसर नइ मिले हे. हां, अतका जरूर हे, के एक पइत उन  डा. परदेशी राम वर्मा के एक कार्यक्रम म संग म भिलाई जावत बेरा शालिकराम जी शब्दभेदी बान चलाए के चर्चा जरूर करे रिहिन हें.)

मैं कोदूराम जी ले फेर पूछेंव के ये शब्दभेदी बाण के सेती सरकार डहार ले आपला कोनों सम्मान मिलिस का? त उन बताए रिहिन के शब्दभेदी बाण के सेती तो नहीं, फेर कला खातिर जरूर मिले रिहिसे. केन्द्र सरकार द्वारा सन् 2003-04 म गणतंत्र दिवस परेड म करमा नृत्य प्रदर्शन खातिर बलाए गे रिहिसे, उहाँ हमर मंडली ल सर्वश्रेष्ठ घोषित करे गे रिहिसे, अउ मोला ‘करमा सम्राट’ के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे. अइसने हमर राज के राज्योत्सव म सन् 2007 म कला क्षेत्र म विशिष्ट योगदान खातिर ‘दाऊ मंदरा जी सम्मान’ ले सम्मानित करे गे रिहिसे.

1 अप्रैल 1924 के गाँव भिंभौरी, जिला दुर्ग (अब बेमेतरा) के माता बेलसिया बाई अउ पिता बुधराम वर्मा जी के घर जन्मे  कोदूराम जी के देवलोक गमन 18 सितम्बर 2018 के बिहाने ले होगे. उंकर देवलोक गमन के खबर मोला हमर समाज के सोशल मीडिया ग्रुप ले मिलिस. वोला पढ़के मोला उंकर अंतिम बिदागरी म जाए के मन होइस. मैं तुरते अपन संगवारी टुमन वर्मा जी ल फोन करके उंकर अंतिम बिदागरी के कार्यक्रम म जाए बर कहेंव. वो तइयार होगे. हम दूनों बिहनिया 10 बजे ही भिंभौरी पहुँच गेन.

उहाँ पहुंचेन तब तक कोदूराम जी के काया उहाँ नइ पहुँच पाए रिहिसे. गाँव के मन बताइन के कोदूराम जी के बड़े बेटा शालिक राम जी उनला कार म लेके आवत हें. गाँव म चारों मुड़ा ले लोगन सकलागे राहंव. तभे मोर नजर सजे-धजे कलाकार मन ऊपर परिस. मैं गुनेंव,  यहा दुख के बेरा म एकर मन के का काम?

मैं वोकर मन जगा गोठियाए ले धर लेंव, त वोमा के एक झन ह बताइस, के कोदूराम जी के करमा नृत्य दल के सदस्य आन. हमन अपन गुरु जी ल अंतिम बिदागरी दे बर आए हावन. मोला बड़ा ताज्जुब लागिस. मोर फेर  सवाल करे म वो बताइस, के हमर गुरुदेव के आखिरी इच्छा इही रिहिसे के मोला ‘करमा सम्राट’ के उपाधि मिले हावय, तेकर सेती मोर अंतिम बिदागरी ल करमा नृत्य गीत के संग करहू.

मैं अपन जिनगी म अइसन कभू नइ देखे रेहेंव, तेकर सेती अचरज लागत रिहिसे. शालिक राम जी उंकर देंह ल कार म लेके पहुंचिन अउ तहाँ ले अंतिम बिदागरी के जोखा चालू होगे. करमा नृत्य दल के सदस्य मन -‘हाय रे… हाय रे सुवा उड़ागे न… सोन के पिंजरा खाली होगे सुवा उड़ागे न…’ करमा गीत नृत्य गावत बजावत आगू आगू रेंगे लागिन, अउ तहाँ ले बाकी मन सब उंकर पाछू हो लिएन…

   उंकर सुरता ल पैलगी जोहार..

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TAGGED: chhattisgarhi, Purkha Ke Surta, sushil bhole
Araitutari Editor April 22, 2023
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