गणेश्वर पटेल, पोटियाडीह (धमतरी)
हमर छत्तीसगढ़ के लोक-जीवन म रचे-बसे लोक-परब, अक्ती-तिहार किसान मन के पहली तिहार माने गे हे, याने इहां के किसान मन के नावा बछर ‘अक्ती’ ले सुरु होथे। ए दिन कोटवार मन गांव म मुनादी करथें- ‘छाहुर बंधाय बर चला हो’ एकर बाद गांव के किसान मन अपन-अपन कोठी ले पांच या सात प्रकार के अन्न (बीज) चुरकी या महुआ पान के दोना म ले के ‘ठाकुरदिया जाथे, जिहाँ ‘ठाकुर देवता’ बिराजमान रइथें।
हमर माटी के पहिली तिहार “अक्ति”
हर गांव के सिवाना म ग्राम देवता के रुप म ठाकुर देव के पूजा-पाठ गाँव वाला मन करथें। बइगा ह ‘ठाकुर देवता’ के पूजा-पाठ करथे, किसान मन होम-धूप देथें अउ ठाकुर देव ल प्रनाम करके बीज मन ल भुइयाँ म बिखेर देथें, फेर नांगर के लोहा के फाल म भुइयां के खोदाई करके प्रतीक रुप म बीज के बोनी करथें। ओकर बाद महुआ पाना के दोना म पानी भर-भर के सिंचाई करथें। अउ भुइयां ल प्रनाम करके धरती दाई ले प्रार्थना करथें- ‘हे धरती दाई, हमर कोठी ल अन-धन ले भर देबे, तोरे किरपा ले हमर गाँव अउ परिवार मा सुख-समृद्धि आही।
परब ले जुड़े मान्यता
ए दिन कोठी के तरी चार ठन माठी के ढेला रखथें। वोकर उप्पर पानी भरे करसी ला रखथें। करसी ले पानी ह माटी के ढेला उप्पर टपकथे। सबो ढेला ल भींग जथे त बने पानी बरसही, अइसे माने जाथे। जउन दिसा के ढेला सूक्खा रहि जथे त वो दिसा म पानी नइ गिरय या कमती गिरथे, अइसे माने जाथे।
पुरखौती के मानता
हमन के अट्ठारह पुरान म ले एक भबिस्य पुरान के अनुसार- अक्ती के तिथि के दिन युगादि तिथि म गिनती होथे। चार युग म ले सतयुग अउ त्रेतायुग के सुरूवात घलो अक्ती के दिन ले ही होय रहिस। भगवान बिस्नु के नर-नारायन के अवतार, हयगरिव भगवान के अवतार अउ परसुराम भगवान के अवतार घलो होय रहिस। बरम्हा जी के बेटा अछय कुमार के जनम घलो अक्ती के दिन ही होय रहिस। कौरव-पांडव के मध्य महाभारत के युद्ध घलो ये दि नही खतम हो रहिस अउ दुआपर युग के अंत हो रहिस। अइसनहा मानियता हावय के ये दिन सुरू करे गे काम अउ करे गे दान-दछिना कभू छय नइ होवय।
बिहाव होए के तको चालू हो जाथे
ये दिन ले सादी, बर-बिहाव होय के चालू हो जाथे। हमर देस राज म ये दिन लईकन मन पुतरा-पुतरी के बिहाव के खेल घलो खेलथे। ये परकार ले लईकन मन सामाजिक काम-बेवहार खुद सिखथे अउ आत्मसात करथे। कई जगह त लईकन मन के संगे-संग पूरा पारा मोहल्ला अउ गांव के मनखे मन लईकन मन के पुतरा-पुतरी के बिहाव के न्यौता म सामिल होथे अउ बिहाव के सबो नेंग जइसे के मड़वा, हरदी-तेल, बरात अउ आखिरी म खाना-पीना करे जाथे। येखर कारन से कहे जा सकत हे के हमर हिंदू के तिहार अक्ती ह सामाजिक अउ सांसकिरीतिक सिछा के सुघ्घर तिहार हावय।
अपन पुरखा मन ल पानी तको देथन
कहे जाथे ये दिन जेन मनखे मन अपन पुरखा ल अक्ति पानी देथे तउन ह सोझे ओ मन ल मिल जाथे। ब्रम्हा के बेटा अक्छय ह इही दिन पैदा होय रिहिस हे। ऐकरे सेथि ये दिन के महत्ता हा छत्तीसगढ़ म अड़बड़ होथे।